________________
२२२
श्रात्मतत्व-विचार
जाये ओर नयी पत्नी से पुत्र उत्पन्न हो जाये, तो राग नये पुत्र पर अधिक हो जाता है और पहली स्त्री का पुत्र अप्रिय लगने लगता है । वह देखे बुरा लगता है, उसे देखकर दुःख होता है । पुत्र वही है, तो उसमें क्या बदल गया १
'धन, सम्पत्ति, पत्नी, पुत्र आदि में सुख देने की शक्ति नहीं है; लोग उनमें सुख की केवल कल्पना करते है । इसीलिए ज्ञानियों ने इस सुख को काल्पनिक कहा है ।
सासारिक सुख चिरस्थायी आनन्द नहीं दे सकते । वे केवल क्षणिक आनन्द दे सकते हैं। आपको लाख रुपया मिला, तब कितना आनन्द होता है। उतना आनन्द एक घंटे के बाद भी होगा क्या ? और, एक दिन बाट, एक हफ्ते बाद, एक महीने बाद, एक वर्ष बाद कितना होगा ? कुछ नहीं ! इसीलिए ऐसे सुख को क्षणभंगुर कहा गया है । ऐसे क्षणभगुर मुख को तुच्छ समझना चाहिए |
सासारिक सुख जिनके पीछे आप पागल हुए फिरते है और जिनके लिए रात-दिन मेहनत करते हैं, राग-द्वेष की पैदावार हैं। जिस वस्तु के प्रति आपको राग होता है, उसका सयोग हो तो उसमे सुख मानते हैं और उसका वियोग हो, तो उसमे दुःख मानते है । उसी तरह जिस वस्तु के प्रति द्वेप हो उसका वियोग हो तो सुख मानते हैं और संयोग हो तो दुःख मानते है । लेकिन, संयोग-वियोग आपके वश में नहीं हैं । आपको आगा हो लाख रुपया लाभ की, पर हो जाती है हानि । इच्छित सुन्दर कन्या को ब्याहने जा रहे हों, पर उसकी अकाल मृत्यु का समाचार मिलता है | आप बीमारी से घबराते है, पर वह आकर धर-दबोचती है । शत्रु के हमले और आकस्मिक आफतो को कौन चाहता है ? फिर भी, उनका आगमन होता है और आपकी सुखविप्रयक तमाम कल्पनाओ को धूल में मिला देते है ।
चे