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ફ
श्रात्मतत्व- विचार
एक बार भौरे ने गुवरीले से कहा - "एक बार तुम मेरे यहाँ आओ तो देखो कि मैं कैसी सुन्दर जगह रहता हूँ ।"
गुबरीले ने कहा - "इस गोचर के ढेर से भी कोई सुन्दरतर स्थान हो सकता है ?"
भौरा बोला – “क्यो नहीं ? चलकर देखो, कुछ देर वहॉ बैठो, तो तुम्हे मेरे कहने का विश्वास हो जायेगा ।"
को तैयार हो गया ।
भौरे के आग्रह से गुबरीला उसके यहाँ चलने पर, उसे गोचर विना घडी भर भी नहीं चलता था । इसलिए गोवर की एक गोली मुँह में दबा ली। जिसको जो वस्तु प्रिय होती है, उसके चिना उससे रहा नहीं जाता। एक कवि ने कहा है
'जिसका मन जिससे मिला, उसको वही सुहाय । द्राक्षा-गुच्छ को छोड़कर, काग निवोली खाय ॥
अथवा
'जिसको भावे सो भला, नहिं सद्गुण- श्राचार | तज गजमुक्ता भीलनी, पहरे गुंजाहार ॥' गुबरीला भौरे के यहाँ पहुँचा । भोरे ने उसका प्रेमपूर्वक स्वागत किया और उसे एक कमल पर बिठाया । कुछ देर बाद गुबरीले से पूछने लगा - " कहो, यहाँ कैसा लगता है ?" पर गुबरीले की हालत तो अजीब हो गयी थी । कमल की सुगंध के कारण उसे गोवर की दुर्गन्ध बराबर नहीं आ रही थी और गोवर की दुर्गन्ध के कारण कमल की सुगंध नहीं मिलने पा रही थी । उसे तो यही लग रहा था - "यहाँ कहाँ आ फॅसा ! इससे मेरा ही स्थान हजार दर्जे चेहतर था ।" इसलिए उसने कहा"मित्र | अब मुझे अनुमति दीजिए ।"
SANTES
भौरे को गुबरीले की जाने की जल्दबाजी समझ में न आयी । पर, जरा ध्यान से अवलोकन करने पर कारण समझ गया । बोला - "पहले