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श्रात्मतत्व-विचार
परन्तु, सत्ता का नगा बहुत बुरा है । उससे मनुष्य मान भूल जाता है और अकार्य कर बैठता है। उत्तर में नमुचि ने कहा-"मैंने आचार्य को बतला दिया है कि तुम सात दिन के अन्दर यहाँ से चले जाओ, वर्ना उसका परिणाम भोगने के लिए तैयार रहो । अपने इन शब्दो में मै कोई फेरफार नहीं करना चाहता।" ___ महामुनि विष्णुकुमार अनेक प्रकार की लब्धियो से युक्त थे, पर अपने श्रमण-धर्म के अनुरूप गात रहते हुए बोले- "हे राजन् । अगर आपको हमारा नगर-निवास किसी कारण न रुचता हो तो ये मुनि नगर के बाहर उद्यान में जाकर रहे ।”
यह सुनकर नमुचि ने कहा- "मैं तुम्हारी गंध भी सहन करने के लिए तैयार नहीं हूँ। अगर तुमको अपनी जान प्यारी है तो जितनी जल्दी हो सके यहाँ से चले जाओ, वर्ना मार डाले जाओगे।"
महामुनि विष्णुकुमार ने कहा-“हे राजन् । यूं उतावले क्यो होते हो ? तुमने राज्यसूत्र हाथ में लिया है, इसलिए न्यायनीति का पालन करने के लिए बँधे हुए हो। किसी भी निरपराध को दड देना एक न्यायी राजा को शोभा नहीं देता। दूसरे, साधु पुरुषो के साथ तुच्छता से वर्तना भी राज्य की स्वीकृत नीति से बिलकुल विरुद्ध है।"
पर, नमुचि को सत्ता का मद पूरा-पूरा चढा हुआ था, इसलिए उसने महामुनि के सत्य और हितकारी वचनों पर ध्यान नहीं दिया। उसने उद्दण्डता से कहा-"इसके अलावा तुमको और कुछ कहना है ?"
महामुनि विष्णुकुमार ने कहा-'राजन् । साधु-महात्माओ को इस तरह बिना कसूर निकाल देना किसी प्रकार उचित नहीं है । उन्हे रहने के लिए कोई-न-कोई स्थान देना चाहिए। उन्हें तीन डग स्थान रहने के लिये दो, मुझे यही कहना है ।"