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आत्मतत्व-विचार
राजकीय गडबड के कारण उसे उज्जयिनी छोडकर हस्तिनापुर में आश्रय लेना पड़ा । वहाँ उसने सिंबल नामक एक मदोद्धत राजा को वश किया; जिससे महापद्मकुमार बहुत खुश हुए और वचन माँगने के लिए कहा। वह वचन उसने अमानत रखा। अब प्रसग आया देखकर उसने महापा राजा को उस वचन की याद दिलायी। राजा ने वह वचन खुशी से माग लेने के लिए कहा । तब नमुचि ने कहा- "मुझे एक यज्ञ करना है। वह यज पूरा होने तक अपना राज्य मुझे सौंप दो।" महापद्म राजा ने राज्य नमुचि को सौंप दिया और स्वय अन्तःपुर का आश्रय लिया।
नमुचि ने हिंसक यज शुरू किया । उस समय राज्य के मन्त्री, सेठ-- साहूकार तथा विभिन्न धर्मों के आचार्य उसकी अभिषेक-विधि करने आये। पर, सुव्रताचार्य नहीं आये । इसलिए नमुचि ने उनके सामने जाकर कृत्रिम क्रोध करते हुए बोला-"राजा के आश्रम मे सब धर्मों के साधु रहते हैं। राना के द्वारा ही सब तपोवनों की रक्षा होती है, इसीलिए तपस्वी अपने तप का छठवॉ भाग राजा को देते हैं, लेकिन तुम पाखंडी लोग मेरे निन्दक हो । अभिमान से अकडे हुए हो । राज्यविरुद्ध और लोकविरुद्ध वर्तन करने वाले हो । तुम लोग राज्य छोड़ कर फौरन् चले जाओ, वर्ना. विवश होकर मुझे तुम्हारा वध करना पड़ेगा।" ___ सुव्रताचार्य क्षमाश्रमण थे। उन्होने नमुचि से उत्तर मे इतना ही कहा-"तुम्हारा अभिषेक हो, उस समय आना हमारा आचार नहीं है, इसलिए हम नहीं आये । वैसे हम न किसी की निन्दा करते हैं न राज्यविरुद्ध वर्तते है।"
नमुचि ने कहा-"आचार्य । मैने तुम्हारा जवाब मुन लिया है । अत्र अधिक कुछ बोलने की आवश्यकता नहीं है । अगर तुम यहाँ सात दिन से अधिक रहोगे तो राजाजा भग करने के लिए तुम्हें उचित दड दिया जायेगा।' इतना कह कर वह अपने स्थान पर चला गया ।