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श्रात्मा की शक्ति
२१५ सुव्रताचार्य ने अपने मुनिमण्डल से पूछा-"ऐसे संयोग में क्या करना चाहिये ?" तब एक मुनि ने कहा-"श्री विष्णुकुमार मुनि ने छह हजार वर्ष तक उग्र तप किया है और उसमे उन्हे अनेक प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त हुई है। इस समय वे मंदराचल पर्वत पर है। अगर वे यहाँ आ जायें तो यान्ति हो जाये, क्योंकि वे महाराना पद्म के बड़े भाई है। इसलिए नमुचि उनके वचनों का उल्लंघन नहीं कर सकेगा। इसलिए जो साधु विद्यालन्धिवाला हो, वह उन्हें बुलाने जाये। श्री सघ के काम मे लब्धि का उपयोग करने में दोष नहीं है।" ___ यह सुनकर दूसरे मुनि ने कहा-"मै आकाशमार्ग से मंदराचल पर्वत पर जा सकता है, पर आने में समर्थ नहीं हूँ। अब इस सम्बन्ध मे मेरा जो कर्तव्य हो सो बताइये ।" । __सुव्रताचार्य ने कहा-"तुमको विष्णुकुमार मुनि वापस लायेगा, इसलिए तुम उसे बुलाने जाओ।" । __ गुरु की आजा होते ही वह मुनि विद्याबल से मदराचल पर्वत पर पहुँचा । उसने विष्णुकुमार मुनि की वन्दना करके सब हाल उन्हें सुनाया। वे कर्तव्य का प्रसंग उपस्थित देखकर कुछ ही क्षणों में मुनि के साथ हस्तिनापुर आये और अपने गुरु सुव्रताचार्य की वन्दना की और साधुओं को साथ लेकर नमुचि के पास पहुंचे। ____ सारी सभा ने श्री विष्णुकुमार महामुनि की वन्दना की मगर नमुचि का मस्तक जरा भी नहीं नमा । सागरसम विशाल हृदय वाले उन महामुनि ने उस तरफ लक्ष न देकर शात और गभीर आवाज से कहा-"हे बुद्धिमान राजा । इतने बड़े नगर मे हम-जैसे कुछ भिक्षु भिक्षुक वृत्ति से रहे, इसमे तुम्हारी क्या हानि है ? दूसरे, वर्षाऋतु का समय चल रहा है, उसमें मुनियो के विहार की कल्पना नहीं की जा सकती, इसलिए सब मुनि इस नगर में खुशी से रहने दिये जायें।"