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प्रात्मा की शक्ति
२१३ किया । महापदम ने भी हाथी के हौदे से नीचे उतर कर माता-पिता के चरणो में सर झुका कर पुत्रोचित विनय प्रकट किया।
इन्हीं दिनों श्री मुनि सुव्रत स्वामी द्वारा दीक्षित सुव्रत-नामक आचार्य विगाल मुनि-मंडल सहित हस्तिनापुर आये। उनकी देशना सुनकर 'पद्मोत्तर राजा को मसार से वैराग्य हो गया । उन्होने राजमहल में आकर मत्रिमंडल की बैठक बुलायी और उनके समक्ष विष्णुकुमार को गद्दी टेकर दीक्षा लेने की भावना प्रकट की। परन्तु, विष्णुकुमार ने कहा"पिताजी, मेरा मन राज्य भोगने की ओर बिलकुल नहीं है। मैं भी इस असार संसार का त्याग कर आत्मकल्याण करना चाहता हूँ। इसलिए महापद्म को ही गद्दी पर बिठाइये ।"
इसलिए महापद्मकुमार का राज्याभिषेक कर दिया गया। वह भरतखण्ड का नवाँ चक्रवर्ती बना । उसने जिनेश्वर का एक विशाल रथ बनवा कर उसे सारे नगर मे फिराया और अपनी माता की इच्छा पूर्ण को । उसने नमुचि-नामक मन्त्री को अपना प्रधान मन्त्री बनाया। __ कालक्रम से पद्मोत्तर मुनि व्रतो का निरतिचार पालन करके सिद्ध-बुद्धनिरंजन हो गये । श्री विष्णुकुमार मुनि को घोर तपश्चर्या के परिणाम स्वरूप अनेक प्रकार की लब्धियाँ उत्पन्न हुई। ___ एक बार सुव्रताचार्य मुनिमंडल-सहित विहार करते हुए हस्तिनापुर पधारे और श्री संघ की विज्ञप्ति से चातुर्मास किया। उनकी वाणी मै अमृत का माधुर्य एव अद्भुत् आकर्षण था। शासन की प्रभावना खूब होने लगी । नमुचि को यह नहीं रुचा । धरती जब हरीभरी होने लगती है, तब जवासा सूखने लगता है।
नमुचि का पहले एक बार इन आचार्य के साथ धर्म-सम्बन्धी वादविवाद हुआ था और उसमे वह हार गया था। रात को वह इन आचार्य का बध करने के लिए गया, पर उसका हाथ थम गया, इसलिए मन की मैली मुराद पूरी नहीं हुई। तब से उसके मन में वैर बॅध गया । बाद में