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आत्मतत्व-विचार
अनार्यों के साथ लडने लगी। लेकिन, अनार्यों ने उसे देखते-देखते छिन्नभिन्न कर दिया । उस समय अकेले श्रीराम ने सबका सामना किया और चाणवर्षा करके सबको हरा दिया। श्रीराम बलदेव थे, इसलिए उनमे इतना बल था।
वासुदेव का वल बलदेव से वासुदेव का बल दूना होता है। प्रतिवासुदेव का बल उनसे कुछ कम होता है । लक्ष्मणजी वासुदेव थे। उन पर रावण ने शक्ति का प्रयोग किया और वे बेहोश हो गये। इससे राम घबराये और उन्होंने हनुमान जी को आजा दी कि विगल्या को लेकर आये । इस विशल्या मे ऐसी शक्ति थी कि, वह बेहोश आदमी को हाथ फेर कर होग मे ला देता था । वह हर प्रकार के रोगी को ठीक कर सकता था।
हनुमानजी विगल्या को ले आये। उसने लक्ष्मणजी के शरीर पर हाथ फेरा और वे होग में आ गये। रामकी सेना मे आनन्द फैल गया । अब वह सेना ने जोर से लडने लगी । उसने कुभकर्ण आदि कितने ही सेनापतियों को पकड कर कैद कर लिया। सिर्फ एक रावण बच गया। वह लड़ाई बन्द करके बहुरूपिणी विद्या साधने बैठ गया । उस विद्या की साधना कठिन है, पर सिद्ध हो जाने पर आदमी चाहे जितने रूप धारण कर सकता - है और अपने कार्य मे सिद्धि प्राप्त कर सकता है। रावण अपने महल के नीचे भूगर्भखड मे इस विद्या को साधने बैठा । मटोदरी ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि "कोई हिंसा न करे।"
अगढ आदि को इसकी खबर लगी । वे उसकी सिद्धि में विघ्न डालने की आजा लेने के लिए राम के पास गये। राम विवेकी और उदारचरित थे । उन्होंने अनुमति नहीं दी। बोले-"जो आत्मा शाति से आराधना करता हो उसके कार्य में बाधा नहीं डालनी चाहिए। लेकिन अगद आदि को भय लगा कि अगर रावण को यह विद्या सिद्ध हो गयी, तो सबका