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श्रात्मतत्व-विचार
है । तीर्थकर की माता का प्रसूति - कर्म आदि ये दिककुमारिकायें सँभाल
लेती हैं।
एक प्रासंगिक घटना
देवो के आने की गति के सम्बन्ध में एक प्रासगिक घटना कहते है । कुछ समय पहले जब हमारा चौमासा वेंगलोर में था, तब मदरास की साउथ फ्लोर मिल वाला सेठ पूनमचन्द रूपचन्द हमारे पास पर्यूपण - पर्व करने के लिए आये । पर्यूपण के बाद वे बेंगलोर के एक भाई के साथ मैसूर जाने के लिए मोटर में निकले। रास्ते में मोटर की दुर्घटना हो गयी। उसी वक्त उनके मुँह से 'नमो अरिहंताण' निकला । जिन्हे 'नमस्कार' में श्रद्वा हो, दिल में 'नमस्कार' की रटन हो, उन्हीं के मुख से अनी के समय 'नमो अरिहताण' का उच्चार होता है ।
फिर क्या हुआ इसको उन्हे खबर न पड़ी। जब आँखें खोलीं तो मोटर में बैठे हुए सत्र लोग मोटर के बाहर खड़े हुए थे । किसी को कोई क्षति नहीं पहुँची । सिर्फ बेंगलोरवाले भाई के पैर में जरा लगा था । बगल में मोटर टूटी पड़ी थी। दरवाजा कब खुला ? वे बाहर कब निकले ? कैसे निकले ? यह कुछ नहीं जानते थे । 'नमस्कार' के स्मरण से प्रसन्न होकर अधिष्ठायक देव ने सहायता की थी । मालूम होते ही निमिषमात्र में देवता आ पहुँचते हैं और सब काम कर देते हैं। मुॅह से कहने में देर लगती है पर देवताओं को आने में ढेर नहीं लगती ।
सौधर्मेन्द्र की जन्म को जानकारी और जाने की तैयारी
टिककुमारियों का सत्र काम पूरा हो जाने के बाद सौधर्मेन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है। सौधर्मेन्द्र ३२ लाख विमानोवाले सौधर्म स्वर्ग का मालिक है । सिहासन के कम्पायमान होते ही वह अवधिज्ञान से जान लेता है कि तीर्थकर भगवत का जन्म हुआ है, फिर वह हरिणैगमेपी देव