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आत्मा की शक्ति
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को बुलाकर आज्ञा करता है कि 'मत्र देवों को खबर दो कि तीर्थङ्कर कारण इन्द्र अभिषेक करने जा रहा है, इसलिए
भगवत का जन्म होने के सब तैयार होकर इन्द्र के पास उपस्थित रहे ।'
मावतंसक - विमान में सौधर्म-सभा में उमे हरिणैगमेपी देव बजाने लगता है चजने लगते हैं । ये घटे कुल तीन बार बजते हैं । 1
यह खबर देने की रीति भी जानने योग्य है । सौधर्म स्वर्ग मे सौधसुघोषा नामक एक बड़ा घटा है । कि बत्तीस लाख विमानो के घटे भी
विमान में विशालगायत महल होते हैं और हर महल में आमोदप्रमोद के साधन होते है । देव निरन्तर आनन्दमय क्रीड़ा करते रहते हैं । इन महलो के बाहरी भाग में घटियाँ होती है । जब हरिणैगमेषी सुघोषा वटा बजाता है, तब विमान का घटा भी बजने लगता है और उसके साथ महल की घटियाँ भी गूँजने लगती है ।
आत्मा की शक्ति और उसके द्वारा देवो पर पड़नेवाले प्रभाव को दर्शाने के लिए यह बात कही गयी है । तीर्थङ्करो की पूजा करते समय इन्द्र भी उनको अपना स्वामी कहकर स्तवन करता है। इतनी बड़ी ऋद्धिसिद्धि का मालिक इन्द्र भी उनका सेवक है ।
नाम के मोह पर नरघाजी का किस्सा
गुरु महाराज के सामने श्रावक का दर्जा भी ऐसा ही है । लेकिन, आजकल अगर कोई आचार्य महाराज किसी धनिक श्रावक को नाम से बुलाये तो उसके नाम के आगे मानार्थ 'सेट' शब्द न लगावें तो उसे बुरा लग जाता है। श्री विजयकमलसूरीश्वरजी महाराज आचार्य थे, तब की बात है । उस समय श्री वीरविजयजी महाराज उपाध्याय थे और मारवाड़ मे विचरते थे । वे स्वभाव से विनोदी थे । व्याख्यान के समय उन्हें श्रावकों को नाम से बुलाने की आदत थी । व्याख्यान सुनने के लिए गाँव का नगरसेठ नरघानी भी नियमित आता था । उस समय गुरु