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श्रात्मतत्व-विचार
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सुनकर राजा और रानी दोनो को ससार से वैराग्य हो गया । अन्त मे सुनन्दा ने पूछा – “हिरन मरकर कहाँ पैदा हुआ है ? उसका उद्धार होगा या नहीं ?" मुनिवर बोले - "हिरन मरकर विंध्य अटवी मे मुग्राम के पास हाथी हुआ है। वह आपके उपदेश से प्रतिबोध पायेगा और जाति- स्मरण से अपने पूर्व भव निहार कर, वैराग्य पाकर, तप करके, आठवें स्वर्ग में उत्पन्न होगा और वहाँ से चलकर मनुष्य भव आकर मोक्ष पायेगा ।"
में
अनेक नगर- जनो के करने लगी । उसने
राजा और रानी ने साथ दीक्षा ली । सुनन्दा साध्वी संयम का पालन अवधि-जान से हाथी को प्रतिबोध करने का समय नजदीक आया जान अपनी गुरुणी से आजा लेकर विध्य अटवी के निकट सुग्राम में चातुर्मास किया । उसके बाद हाथी को प्रतिबोध करने उसके पास गयी ।
त्रस्त था । वह गाँव के अनेक जब साध्वी को
तरफ ही बढ़ते
उस हाथी के उपद्रव से सारा गॉव लोगों और घरो का नाश कर चुका था। गाँववालो ने जंगल की ओर जाते देखा और हाथी के निवासस्थान की देखा, तो वे कहने लगे - " उधर न जाइये ! हाथी आपको मार डालेगा " फिर भी सुनन्दा साच्ची निर्भयतापूर्वक उस तरफ चलती गर्यो । इतने मे हाथी वृक्षों के झुरमुट से बाहर आया और सुनन्दा साधी के सामने आने लगा । फिर भी साध्वी ने हिम्मत नहीं छोडी । उनने तो उसका उद्धार करने का दृढ सकल्प कर ही लिया था ।
हाथी नजदीक आ गया। पर, साध्वी को देखते ही ठडा पड गया । पूर्व के सस्कार क्या नहीं करते ? उमे साध्वी पर राग हुआ और वह अपनी सूँड़ ऊँची-नीची करके उस राग को प्रदर्शित करने लगा ।
मुनन्दा साध्वी ने कहा - " अभी राग से तृत नहीं हुआ ? मेरे निमित्त तू ६-६ भव में मरा ! अब तो समझ कर इस राग को दूर कर !"
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