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आत्मा की शक्ति
हरिणैगमेषी की उद्घोषणा और प्रयाण इस प्रकार घटा बजने पर सब देव इन्द्र का हुक्म सुनने के लिए सावधान हो जाते है । उस समय हरिणेगमेपी देव आकाश में खूब ऊँचे जाकर बडी ऊँची आवाज से सब देवो को सुनाता है-"तीर्थकर भगवत का जन्म हुआ है, उनका उत्सव करने इन्द्र महाराज पधारने वाले हैं, इसलिए सब देव उनके साथ जाने के लिए तैयार हो जायें ।'
फिर इन्द्र के हुक्म से पालक नामक देव सुन्दर विमान तेयार करता है। उसमे बैठकर सब मनुष्यलोक में तीयङ्कर के जन्मस्थलपर आते हैं।
प्रभु को मेरु पर ले जाना उनमें से इन्द्र नीचे उतरकर तीर्थङ्कर की माता के पास जाता है और उन्हें नमन करके कहता है-"अब जरा भी न घबगये, हम तीर्थङ्कर भगवान् का अभिषेक करने के लिए उन्हें मेरु पर्वत पर लिये जाते हैं।" यह कहकर इन्द्र भगवान् का एक हूबहू प्रतीक बनाकर माता के बगल में रख देता है।
__ उसके बाद इन्द्र पाँच रूप बनाता है। उनमें से एक रूप प्रभुजी को ग्रहण करता है, दो रूप चॅवर डुलाने लगते हैं, एक रूप छत्र लेता है और एक रूप अगरक्षक की तरह हाथ में वज्र लेकर आगे-आगे चलने लगता है। इन्द्र के आगे और पीछे देवगण जलूस के रूप में चलते हैं। यह जलूस कुछ ही देर में मेरु-पर्वत पर पहुँच जाता है।
मेरु-पर्वत पर स्नात्राभिषेक सौधर्मेन्द्र आदि देवो का जलूस जब मेरु-पर्वत पर पहुँचता है तब दूसरे ६३ इद्रो के सिंहासन कपित होते हैं । तब वे भी सौधर्मेन्द्र की
* सुर-असुरों के कुल ६४ इन्द्र होते हैं ।
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