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आत्मा की शकि लेनदार उससे सख्त तकाजा करने लगा और, न देने पर जान से मार डालने की धमकी देने लगा। वह उसे आश्वासन देते हुए कहने लगा"कृपा करके एक दिन का वक्त दो, मै चोरी करके भी तुम्हारे पैसे अदा कर दूंगा।" जीतनेवाले ने एक दिन की मोहलत दे दी।
अब वह जुआरी-"क्या करूँ ? चोरी करूँ ? कैसे करूँ ?" आदि सोचता हुआ चला जा रहा था।
उसने राजमहल में चोरी का विचार किया और बचबचा कर चलतेचलते राजमहल के पीछे की गली में आ पहुँचा । वह दीवार के सहारेसहारे चल रहा था कि उसे रस्सी की वह सीढी दिखायी दी। वह उसकी मजबूती को हिलाकर देखने लगा।
सकेत सीढी को हिलाने का था । दासियो ने समझा कि रूपसेन आ गया । आदेशानुसार उसे ऊपर खींच लिया गया। जुआरी के लिए तो वह कहावत चरितार्थ हुई कि, 'मनभाती चीज को वैद्य ने बता दिया।' उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ ? कैसे भी हुआ हो, वह प्राप्त अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहता था। महल में अंधेरा था; क्योंकि ऐसा काम करनेवाला रोशनी नहीं रखता। अँधेरे में यह न मालम हो सका कि यह रूपसेन नहीं कोई और ही है।
दासियो ने उसे ले जाकर सुनन्दा के पलग पर बिठाया । सुनन्दा ने तो यही समझा कि रूपसेन आया है, इसलिए उससे प्रेम मे भेंट की। सुनन्दा का स्पर्श करते ही जुआरी को काम-विकार जागा और उसके साथ भोगविलास करने लगा । सुनन्दा ने उसका कुछ निषेध नहीं किया। इतने मे कुछ दासियाँ हाथ मे दीपक लेकर सुनन्दा के खड की तरफ़ आती हुई दिखायी दी । सुनन्दा बोली-"हमें बात करने का अन्तराय होगा; इसलिए कुछ भी बात न हो सकी । अब आज तो तुम जाओ, फिर कभी मिलेंगे ।” जुआरी 'न बोलने में नौगुण' मानकर, कामक्रीडा