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आत्मा को शकि
१८६ नहीं है। पहले उन्हें अमेरिका का ज्ञान नहीं था। आस्ट्रेलिया भी चाट में ही मिला । इस प्रकार वे पॉच खड की दुनिया मानने लगे। पर, पिछले कुछ वर्षों से छठे खड की बात प्रकाश में आयी है और वहाँ प्रवास भी होने लगे हैं। कुछ अर्मे के बाद सातबॉ, आठवॉ और नवा खंड भी मिल सकता है। सच तो यह है कि आज जिसे दुनिया' कहा जाता है, वह जम्बूद्वीप के भरत-खड का ही एक भाग है ।
ढाई द्वीप मे १५ कर्मभूमियो और ५६ अतरद्वीपो में मनुष्य वास करते हैं । इन क्षेत्रों में से १५ कर्मभूमियो मे ही तीर्थंकरो का जन्म होता है, कारण की कृषि, वाणिज्य आदि कर्मों का व्यवहार कर्मभूमियो मे ही होता है और तप, सयम आदि अनुष्ठान भी वहीं होते है ।
१५ कर्मभूमियो में ५ भरत, ५ ऐरावत और ५ महाविदेह है । इनमे भरत और ऐरावत में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल होते है। उनके तीसरे और चौथे आरा में तीर्थंकर जन्म लेते है। महाविदेह में सब काल समान होता है और वहाँ तीर्थकर सदा विद्यमान रहते है ।
तीथकरों का जन्म और दिक्कुमारियों का आगमन
तीर्थंकरों का जन्म ठीक अर्धरात्रि को विजयमुहूर्त में होता है, उनके जन्मते ही दिक कुमारियों का आसन कपायमान होता है। तब वे अपने सहज अवधिज्ञान से जान लेती हैं कि, कहाँ किसके यहाँ तीर्थंकर का जन्म हुआ है। उसके बाद वे अभियोग्य देवो को विमान बनाने और तैयारी करने का आदेश देती हैं और उस विमान द्वारा जन्मस्थान पर आ जाती
* देव दस प्रकार के होते है (१ ) इन्द्र, (२) सामानिक, (३) ब्रायशित, (४) पारिपद्य, (५) आत्मरक्षक, (६) लोकपाल, (७, अनीक (८) प्रकीर्णक, (8) अभियोग्य और (१०) किल्विपक । इनमें पाभियोग्य देव दास-स्थान पर होते हैं, यानी उन्हें सेवक का काम करना होता है ।