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बारहवाँ व्याख्यान आत्मज्ञान कब होता है ?
महानुभावो!
व्याख्यान प्रारम्भ करने से पहले हम श्री उत्तराध्ययनसूत्र का अभिवादन करें, क्योकि वह अध्यात्मज्ञान से ओतप्रोत है। उसके छत्तीसवे अध्ययन से हमे अल्पससारी आत्मा के स्वरूप की जानकारी हुई है और आत्मविचार करने की प्रेरणा मिली है।
'आत्मज्ञान कब होता है ?' यह आज के व्याख्या का विषय है। अगर यह बात ठीक समझ में आ जाये तो वेडा पार है; वर्ना हालत नाजुक समझना । जीवन की सच्ची कमाई आत्मज्ञान है; न कि स्पया ! आत्मजान होगा, तो पाप से बचा जा सकेगा, पुण्य उपार्जन किया जा सकेगा, और सयम धारण करके कल्याण की साधना की जा सकेगी। रुपया आपकी क्या मदद करनेवाला है ? उदारता से उसका सदुपयोग करें तो पुण्य हो, पर वह उदारता भी आत्मज्ञान के बिना नहीं आने याली है।
आत्मज्ञान केवल सद्गुरु के पास से मिल सकता है।
सद्गुरु शब्द का प्रयोग जानबूझकर किया गया है; यह बात आप ध्यान में रखियेगा ! हर गुरु आत्मज्ञान नहीं दे सकता। अगर कुगुरु के हत्थे चढ गये, तो तुम्हारा धनमाल लूट लेगा और तुम्हारे चित्त को भ्रमित कर देगा। बाहरी दिखावे के भुलावे में न आजाना। अगर फॅस गये तो उस बाँझनी गाय के खरीदनेवाले की-सी हालत होगी।