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सर्वशता
१७१ था कि यह सब कैसे दिखायी देता है ! ऐसे ज्ञान को हम 'विभग-ज्ञान' कह सकते हैं। उसके उत्पन्न होने का कारण शायद न बताया जा सके। कारण कुछ भी हो; पर ऐसे उदाहरण प्रमाणित करते है कि आत्मा में भूत, भविष्यत् और वर्तमान को जानने-देखने की शक्ति मौजूद है। इससे सर्वज्ञता की भी सिद्धि होती है।
परम पुरुष सर्वज्ञता प्राप्त करके जगत को कल्याण का सच्चा मार्ग बताते है। उस मार्ग को पाकर जगत् के करोड़ो जीव अपना कल्याण करते हैं और हमेशा के लिए परम सुखी हो जाते है। ऐसे परम महर्षियों का जीवन, ज्ञान और चर्या जगत के तमाम आत्माओं के हितार्थ होती है। ऐसे महापुरुष दुनियवी चीजो, भौतिक पदार्थों, का मोह छुड़ा कर मोक्षमार्ग पर लगाते हैं।
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*सर्वशता की सिद्धि करनेवाले अनेक ग्रन्थ और ग्रन्थाधिकार जैनश्रुत में मौजूद हैं। श्री हरिभद्रसूरि की 'सवशसिद्धि, नदीसूत्र की व्याख्या में श्री मलयगिरि महाराज का 'सर्वशसिद्धि का निरूपण' सन्मतितर्क की विवृत्ति में श्री अभयदेव. सूरि द्वारा रचित 'सर्वशतावाद', कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा प्रमाणमीमासा में सर्वशतासिद्ध की गयी। 'सर्वशसिद्धि', आदि इस विषय के लिए विशेष रूप से पठनीय है।