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ग्रामज्ञान कव होता है ?
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थे और उनका नाम क्यो बोलना चाहिए । इस विषय में वह कुछ नहीं जानता । व्यवहार में ऐसे जान को 'तोते का जान' कहा जाता है । उमका कोई महत्त्व नहीं है। इसी तरह लोग मुंह मे 'आत्मा है, आत्मा है' बोलते है, पर वह कैसा है ? कहाँ रहता है। गरीर आदि मे भिन्न है या अभिन्न ? उसमें क्या-क्या शक्तियाँ है ? आदि कुछ नहीं जानते। उनका ज्ञान विषयप्रतिभाम या तोते का ज्ञान है।
जिसमे वस्तु के हेय और उपादेव अगो का ज्ञान हो पर तथाविध निवृत्ति या प्रवृत्ति न हो. वह आत्मपरिणतिमत जान कहलाता है। जैसे पडित लोग जानते है कि विषय और कपाय त्याच्य है, क्योकि वे दुर्गति के कारण हैं, पर वे तदनुसारिणी निवृत्ति या प्रवृत्ति यथार्थ रूप से नहीं कर सकते । उनका जान आत्मपरिणतिमत् है ।।
श्रेणिक राजा सम्यकदृष्टि थे। वे यह जानते थे कि आश्रव और बध त्याज्य है तथा संवर और निर्जग श्रेयस्कर है, परन्तु तथाविध निवृत्ति या प्रवृत्ति नहीं कर सकते थे। इसलिए उनकी दुर्गति रुकी नहीं। ऐसे जान का विशेष महत्त्व नहीं । व्यवहार में ऐसे जान को 'पोथी का बेंगन' कहा जाता है। 'पोयी का वेगन' कैसा होता है अब इमे बतलाते हैं :
एक शास्त्री कथा कर रहे थे। अभश्य का विषय आया और बेंगन की बात निकली । शास्त्रीजी ने अनेक उदाहरण और तकों से सिद्ध कर दिया कि वेगन अभक्ष्य हैं, इसलिए उसे नहीं खाना चाहिए। उनके वक्तव्य से श्रोता मुग्ध बन गये। उनमे से कइयो ने भविष्य मे बेगन न खाने का नियम लिया । यूँ कथा पूरी हुई और शास्त्रीजी पोथी बगल में -टबाकर चलने लगे कि, हाथ की थैली गिर गयी और उसमें से दो-तीन वेगन बाहर निकल पडे । इससे श्रोता आश्चर्य मे आकर पूछने लगे"शास्त्रीनी। यह क्या | क्या आप बैंगन खाते है ?” शास्त्रीजी ने अविचल भाव से जवाब दिया--"पोथी के बेंगन नहीं खाने चाहिए, बाकी बेगन खाने में हर्ज नहीं।"