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श्रात्मतत्व-विचार
सर पर रखवा कर जितशत्रु राजा के पास पहुँचे और कहने लगे"हे राजन् | हमने सुन्दर ग्रन्थ रचना की है, उसे आप मुनिये !"
राजाने कहा – “ये ग्रथ तो खूब मोटे हैं । इनमें कितने श्लोक है ?" पण्डितो ने कहा - " हर एक ग्रथ में एक लाख लोक है ।"
यह सुनकर राजा ने कहा कि - "हे परिडतप्रवरो ! आपकी बुद्धि को धन्य है कि आपने एक-एक विषय पर लाख-लाख श्लोक की रचना की । लेकिन, आप मेरी स्थिति को जानते है । मुझे राज्य का बड़ा कार्यभार रहता है । इसलिए आप इन ग्रन्थों का संक्षेप करें तो सुनूँ ।"
पण्डितो ने राजा की इस सूचना पर विचार करके कहा - " आप के पास ज्यादा वक्त न हो, तो हर ग्रन्थ का समावेश पच्चीस-पच्चीस हजार लोको में कर दिया जायेगा । "
राजा ने कहा - "यह भी बहुत है ।" इसपर पण्डितो ने हजार-हजार इलोको की दरख्वास्त की; पर राजा इस पर भी रजामन्द न हुआ । तब पण्डित हजार से पॉच सौ पर आये, सौ पर आये, दस पर आये, और आखिर एक श्लोक पर आये । राजा ने कहा - " अब भी इनका संक्षेप हो सकता हो तो कीजिये ।" तत्र चारो पण्डित केवल एक-एक चरण सुनाने को तैयार हो गये । राजा सुनने को तैयार हुआ तत्र पहले पण्डित ने कहा : “जीर्णोभोजनमात्रेयः" दूसरे ने कहा : 'कपिलः प्राणीना दया' तीसरे ने कहा : 'वृहस्पतिरविश्वासः' और चौथे ने कहा : 'पाञ्चालः स्त्री मार्दवम् ।'
इसका अर्थ समझ लें | आयुर्वेद के पण्डित ने कहा - "हमारे शास्त्र में आत्रेयऋपि का मन बड़ा प्रमाणभूत माना जाता है । वह यह कहते हैं कि पहले का भोजन पच जाने के बाद ही भोजन करना चाहिए। ऐसा करनेवाला निरोगी रहेगा और दीर्घजीवी होगा ।' धर्मशास्त्र के पण्डित ने कहा— 'हमारे शान्त्रो में कपिल ऋषि के लिए बड़ा मान है। वह कहते है