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पात्मतत्व-विचार
आत्मज्ञान के विना सब फिजूल है आजकल भौतिकवाट जोर पर है, इसलिए जहाँ-तहाँ आर्थिक विकास, औद्योगिक प्रगति और अधिक उत्पादन की बाते मुनायी देती है, लेकिन आत्मजान के बगैर यह सब निरर्थक हो जानेवाला है। इनसे दुनिया को सुखशाति की प्राप्ति नहीं हो सकती।
आज आर्थिक विकास के नाम पर यत्रवाट को बढावा दिया जा रहा है। लेकिन, किसी को यह भी ख्याल आता है कि इससे कितने स्वाश्रयी लोग बेकार बन जाते है ? बड़े-बड़े कारखानो से आर्थिक विकास होता हो तो पृजीपतियो का होता है। उससे गरीब यादमियो को कोई राहत नहीं मिलती। सौ का धधा खत्म हो जाय और पॉच आदमियों को कारखाने में लगा दिया जाये इसे उचित व्यवस्था नहीं कह सकते । हमारी आर्थिक स्थिति यत्रो के आने से पहले अच्छी श्री या अब ? तब जितना मोना, जितना धन, देश मे था उसका सौवॉ भाग भी इस समय नहीं रहा।
हुनर-उद्योग के विकास के नाम पर, अधिक उत्पादन के नाम पर आज हिंसा बहुत बढती जा रही है । अनाज की दो बाले मुह मे ले लेने के लिए जानवरो को गोली मार दी जाती है। इसके लिए खास शिकारी टोलियाँ रखी गयी है। मत्स्य-उद्योग जैसे घोर हिंसक उद्योग को भी उत्तेजन दिया जा रहा है। यह सब आत्मविहीन शिक्षण का प्रताप है ।
और, अगर यही स्थिति चालू रही तो मनुष्यो पर भयकर प्राकृतिक प्रकोप दृटे बगैर नहीं रहेगा। आज पूर्वापेक्षा कुदरती प्रकोप ज्यादा होते है । जहाँ-तहाँ जलप्रलय, धरती कम्प, रेलवे और विमानी दुर्घटनाओं की बाते सुनायी देती हैं। इसका कारण यह है कि अनीति बढ़ गयी है, अनाचार बढ़ गया है । आज आत्म-कल्याण का लक्ष्य बिलकुल नहीं रहा। जहाँ आत्मज्ञान ही नहीं है, वहाँ आत्महित या आत्मकल्याण का प्रयत्न सभव ही कैसे हो सकता है ?