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यात्मज्ञान कब होता है ?
कि दया से बढकर कोई धर्म नहीं है।" नीतिशास्त्र के पण्डित ने कहा-"नीतिगास्त्र तो बहुतो ने रचे है, पर उनमे वृहस्पति का स्थान बहुत ऊँचा है। वह कहते है कि जीवन में सफल होना हो तो किसी पर अन्धविश्वास नहीं रखना चाहिए।" कामगास्त्र के पण्डित ने कहा'कामशास्त्र के परम विशारद पाचाल ऋषि का अभिप्राय है कि प्रीति की सच्ची रीति स्त्रियों के साथ मृदुता मे वतन करना है।" ।
यह सुनकर राजा ने कहा-'हे पण्डितवों ! आपने एक-एक विषय पर लाख लाख इलोक रचे । आपकी बुद्धि विषय का विस्तार करने में बडी निपुण है; यह बात तो शुरू में ही मैने समझ ली थी, लेकिन मुझे यह देखना था कि आप विषय का मंझेप कितना कर सकते है १ वह आपने विलक्षण रीति से कर दिखाया है। आपको ऐसी प्रगल्भ बुद्धि से मै यत्यन्त प्रसन्न हुआ हूँ, आपको लाख-लाख मोहरें इनाम में देता हूँ।"
इस तरह पण्डितो की कद्र हुई। इससे वे बड़े आनन्दित हुए। वे इनाम लेकर, राजा को आशीर्वाद देकर प्रसन्न वदन अपने घर आये । __तात्पर्य यह है कि, हजारो श्लोको का सार थोडे शब्दो में कहा जा सकता है। __ ऐसे सारभूत वचन सुनने को मिले, इसे प्रवल पुण्योदय समझना चाहिए । शास्त्रकार भगवतो ने शास्त्रश्रवण के योग को भी मनुष्यत्व की तरह ही दुर्लभ बताया है। अगर आपको उन वचनो पर रुचि हो, श्रद्धा हो, अनुराग हो, तो समझना कि आप अल्पससारी है; आपके भवभ्रमण की मर्यादा बंध गयी है । अल्पससारी आत्मा का वर्णन पहले व्याख्यान में किया गया है, वह आपको याद होगा । उसमे 'जिणवयणे अणुरत्ता' ये शब्द पहले आते है।
मिथ्यात्व का महारोग अगर आपको कामिनी-कञ्चन, नाटक-सिनेमा, क्रिकेट-फुटबॉल,