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आत्मतत्व-विचार
'अनानी जिन कमी का क्षय करोडो वर्षों के परिश्रम से कर सकता है, जानी उन कमां का क्षय मात्र उवासोच्छ वाम के समय में कर डालता है।' __इसे कोई अतिगयोक्ति न माने, अतिशयोक्ति तो कवि करते है, जैनमहर्पि नहीं करते । वे तो जैसा हो वैसा कहते हैं । लेकिन, आपकी बुद्धि दृष्टान्त और तर्क की आदी हैं । अन्य विषयो की तरह इस विषय में भी आपका समाधान एक दृष्टान्त से करेंगे ।
इलापुत्र का दृष्टान्त
धनदत्त सेट सब प्रकार से सुखी था; पर उसके एक भी पुत्र नहीं था । लोग पुत्र के लिए क्या नहीं करते ? अनेक ज्योतिषियों से पूछते हैं, भूत-प्रेत क्रिया करनेवालो से मिलते है, टेव-देवियों की मान्यताएँ करते हैं। धनदन्त सेट को भी, यह सब कुछ कर चुकने के बाद, इलादेवी की कृपा से एक पुत्र हुआ, इसलिए उसने उसका नाम इलापुत्र रखा । ___ अकेला पुत्र और श्रीमतधर ! इसलिए उसके लाड-प्यार मै क्या कमी रह सकती थी ? 'दिन दूना रात चौगुना' बढकर वह बड़ा हुआ और अनुक्रम से युवावस्था को प्रान हुआ। इस अवस्था में मनुष्य को विषयाभिलापा जागृत होती है और अगर पूर्वसस्कारो का बल पर्याप्त परिमाण में न हुआ, तो उसके हाथो अनेक अनर्थ हो जाते हैं । इलापुत्र का भी ऐसा ही हुआ। ____ एक बार नट लोग तमागा दिखलाने आये । उनकी एक युवती पुत्री को देखकर इलापुत्र मोहित हो गया। 'अगर गादी करूँगा तो इस नटपुत्री से ही करूँगा', ऐसा सकल्प कर लिया। फिर वह अनमना होकर एक टूटी खाट पर पड़ा रहा । माता-पिता ने उसे बहुत मनाया, तो बोला "आज