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प्रात्मतत्व-विचार
आपको टेटी वाला चमत्कार दिखाना ही है।" यह कह कर उसने अपने पास से बीज निकाले और रेती पर डाल कर पानी छिडका कि, तुरन्त उनमे मे वेलें फूटी और अक्करटेटी तैयार हो गयौं । राजा को चखायीं तो अमृत-जैसी मीठी लगी। वह बडा खुत्र हुआ। उसने मत्रीसे पूछा-"अगर इस बीज में ऐसी शक्ति है, तो पहले क्यो नहीं हुआ ?' मत्री ने कहा- "इस नायत्र मत्री की दगाबाजीसे। ये बीज रातोरात सेक दिये गये थे।" इस उत्तर से राजा समझ गया कि, नायवमत्री ने सीढी पर हाथ रखा सो सीढी लेने के लिए नहीं, पर सीढी मे ऊपर चढ़ कर मत्री की स्त्री पर हाथ रखने के लिए ही रखा था। उसने जान लिया कि यह मत्री दुराचारी है और मेरे सच्चे मत्री को खोटी चाल मे परीगान करना चाहता है । इसलिए, राजा को नायब मत्री पर बड़ा क्रोध आया और उसके गले मे वह सीढी बाँध कर उस सारं गाँव में फिराया। फिर, उसे पदभ्रष्ट करके देग-निकाला दे दिया और उसका स्थान पुराने मत्री को दे दिया ।
इस तरह अक्ल मिलने मे पदभ्रष्ट मत्री फिर अपने स्थान पर आरूढ हुआ और सुखी हुआ । ___ ज्ञान के प्रकार और उसके अन्य गुणो के विषय में जानी महाराज ने जो देखा होगा, वह अब बाद मे कहा जायेगा ।