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श्रात्मा का खजाना
पारिणामिकी- बुद्धि
राजा के यहाँ छोटे-बड़े अनेक सेवक होते हैं । उनमें से एक बार तरुण सेवको ने राजा से कहा - "महाराज ! सफेद बाल वाले और जीर्ण शरीरवाले वृद्धो को नौकरी में न रखकर तरुणो को ही रखिये, इससे आपका महल शोभा पायेगा !"
राजा पक्का अनुभवी था -- पारिणामिको बुद्धिवाला था । उसने कहा—“मैं तुम्हारी बात को ध्यान में रखूँगा ।"
इस बात को कुछ दिन बीत गये । तब राजा ने तरुण सेवकों को इकट्ठा करके पूछा - "मुझे लात मारने वाले को क्या दड देना चाहिये ?" तरुण सेवको ने तुरन्त जवाब दिया- " उसे सूली का सजा देनी चाहिये ।” फिर राजा ने वृद्ध सेवकों को इकट्ठा करके वही सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा - " हमे कुछ समय दीजिये । सोच कर जवाब देंगे ।"
सब वृद्ध सेवक एकत्र होकर विचार करने लगे - " राजा को लात कौन मार सकता है ? या तो रानी या उसका बाल- कुँवर । उनका तो सत्कार करना चाहिये ।” कुछ देर में उन्होंने जवाब दिया- "महाराज ! आपको लात मारनेवाले का सत्कार करना चाहिये ।"
आशय के अनुसार जवाब मिलने पर, राजा खुश हुआ और उसने तरुण सेवकों को इस जवाब का हवाला देकर कहा - " अब आप ही कहे कि मुझे वृद्धों को नौकरी मे रखना चाहिये या नहीं ?"
तरुण सेवक क्या जवाब देते ! उन्होंने मन-ही-मन राजा की और वृद्धो की परिपक्व बुद्धि की प्रशंसा की ।
मतिज्ञान का विषय यहाॅ पूरा होता है । अब श्रुतज्ञान के भेदों पर विचार करें।