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सर्वत्रता
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केवलज्ञानी मृगावती साध्वी ने घोर अँधेरे में भी काले नाग को जाते हुए देख लिया था । कथा है :
भगवान् महावीर कौशाम्बी में बिराजे हुए थे । चन्द्र और सूर्य अपने स्वाभाविक विमानों में उनकी वन्दना करने आये। उन विमानों के प्रकाश से आकाश प्रकाशित रहा, इसलिए लोग दिन समझकर रात को देर तक बैठे रहे । साध्वी मृगावती का भी ऐसा ही हुआ; यद्यपि उसकी गुरुणी महत्तरा चन्दनबाला योग्य समय अपने स्थान को चली गयी थी ।
जब मृगावती को अपनी गलती मालूम हुई, तो उसे आघात लगा और वह अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप करने लगी । वह उपाश्रय में पहुँचकर चंदनबाला से क्षमायाचना करने लगी । गुरुणी चन्दनबाला ने कहा - " साध्वियों को रात को देर तक बाहर नहीं रहना चाहिए । उन्हें समय पर उपाश्रय मे आ ही जाना चाहिए ।"
मृगावती कोई सामान्य साध्वी नहीं थी । वह महाराज चेटक की पुत्री थी; कौशाम्बी की राजरानी थी, ससारपक्षसे चन्दनबाला की मौसी थी । वह चाहती तो बचाव कर सकती थी, पर भूल का बचाव क्यों किया जाये; यह सोचकर वह चुप रह गयी । उसने दिल को समझा लिया कि 'जत्र सर्वस्व छोड़ दिया है, तो इतनी स्खलना भी क्यो हो ?' वह शुद्ध भावना से दारुण पश्चात्ताप करने लगी । उस पश्चात्ताप के प्रताप से उसकी कर्मखलाऍ टूट गर्यो, घातिया कर्मों का नाश हो गया, और उसे केवलज्ञान प्रकट हो गया |
मृगावती का सथारा चन्दनबाला के सथारे के पास था । उस वक्त उपाश्रय में रात का प्रगाढ अन्धकार व्याप्त था । इतने में मृगावती ने चन्दनबाला के हाथ की तरफ आता हुआ एक काला नाग देखा । उसने चन्दनबाला का हाथ ऊँचा कर दिया और नाग चन्दनबाला के हाथ के नीचे से निकल गया । चन्दनवाला जग गयी ।
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