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सर्वज्ञता
१५६ जाता है। पहले यह बतायेगे कि केवलनान इनमे से किस गति में होता है।
देवो को मुख-वैभव बहुत होता है, परन्तु चारित्र नहीं होता । उनकी हार्दिक अभिलाषा रहती है कि अगर हमे दो घड़ी के लिए सामायिक की सामग्री मिल जाये, चारित्र की प्राप्ति हो जाये, तो हमारी देवगति सफल हो जाये। पर, वह सामग्री उन्हें प्राप्त नहीं होती। देवों को अवधिज्ञान तो जन्म से ही होता है, पर चारित्र के अभाव में वे 'केवलज्ञान' प्राप्त नहीं कर सकते।
नारकी जीव भी, देवों की तरह, जन्म से ही अवधिज्ञानी होते है, परन्तु चूंकि दुःख का निरन्तर अनुभव करते रहते हैं, इसलिए चारित्रपरिणामी नहीं होते । अतः उन्हें भी केवलजान नहीं हो सकता।
तिर्य चो की हालत कैसी दर्दनाक होती है, आप जानते ही है । उन्हे भूख, प्यास, टडी, गरमी, आदि अनेक कष्ट सहते रहना पड़ता है, उनमे चारित्र के परिणाम कैसे हो ? तियं चो को सज्ञी पचेन्द्रियो के निमित्तवगात् जातिस्मरण ज्ञान होता है और वे अपना पूर्वभव देख सकते हैं। उन्हें निमित्तवगात् अवधिज्ञान भी होता है। परन्तु चारित्र के अभाव से वे केवलजान नहीं पा सकते ।
१-सामाइयसामग्गि देवा वि चिंतति हिययमज्जम्मि ।
जइ होइ मुहत्तमेग, ता अम्ह देवत्तणं सुलहं ॥ २-श्री तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय में 'यथोक्तनिमित्त पड्विकल्प. शेपाणाम्' (॥ २३ ॥ इम सूत्र से यह दर्शाया गया है कि देवो और नारकियों के अलावा दूसरों को निमित्तवशात् अवधिज्ञान होता है।
३-तियंचों में महाव्रों का आरोप होने पर भी उनमें चारित्र के परिणामों का अभाव होता है, यह बात श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषणवती-नामक ग्रन्थ में स्पष्ट की है।