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आत्मतत्व-विचार
भी नहीं देखा था। एक दिन उसने राज्य के नैमित्तिक ज्योतिषी को बुलाकर पूछा-"मेरा मरण कत्र, किस प्रकार होगा ।' नैमित्तिक ने ग्रहदशा देखकर और बराबर गणना करके कहा-'राजा दशरथ के भावी पुत्रो बलदेव और वासुदेव द्वारा और राजा जनक की पुत्री सीता के निमित्त से आपकी मृत्यु होगी ।" ये व्यक्ति उस समय जगत् में विद्यमान नहीं थे, फिर भी नैमित्तिक ने उनकी बात की और हम जानते हैं कि वह सच्ची निकली।
नैमित्तिक इस प्रकार ठीक-ठीक भविष्य बतला सकते थे, क्योकि ये भावी घटनाएँ उनके अन्तरचक्षुओं के सामने खड़ी हो जाती थी; तो फिर उनकी अपेक्षा अनेक गुने शक्तिशाली केवलजानी के अन्तरचक्षुओ के समक्ष यह सब क्यो नहीं खडा हो सकता ?
हम मनुष्यों को विभिन्न विषयों मे निष्णात देखते है। सामान्य मनुष्य की अपेक्षा उनका जान बहुत ही उच्चकोटि का होता है, आत्मा की जान-गक्ति अगाध है । यह शक्ति जब चरम सीमा पर पहुँच जाये तो. समस्त वस्तुओं के समस्त भावो का जान क्यो नहीं हो सकता?
आपने 'मैस्मेरिज्म' करने वालो को देखा होगा। जिसे 'मैस्मेगइज' किया जाता है, उसकी आँखो पर पट्टी बाँध दी जाती है, अथवा उसके सारे शरीर पर काला मोटा कपड़ा उढा दिया जाता है । फिर, मैस्मेरिज्म करनेवाला अपने हाथ मे कोई किताब लेता है और उसके किसी अंग पर निशान लगाता है । मैस्मेराइज हुआ आदमी उसे फरफर पढ़ जाता है । अथवा रास्ते से गुजरते हुए किसी आदमी की तरफ इशारा करके मैस्मे राइज करने वाला पूछे तो वह उसका यथार्थ वर्णन कर जाता है । केवल ज्ञान को न मानने वाले से हम पूछते है-"जब एक आदमी की आँखे वन्ट होती है और उनके ऊपर पट्टी बंधी हुई होती है, तो वह आदमी यह सब किस तरह देख लेता है ?' इससे यह समझा जा सकता है कि, आखा के बगैर भी देखा जा सकता है और देखने वाला आत्मा ही होता है ।