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यात्मतत्व-विचार
रखे थे। वे बरतन आदि बनाते थे और उन्हें गजमार्ग में जाकर बेचने थे। सद्दालपुत्र की पत्नी का नाम अग्निमित्रा था।
महालपुत्र गोगालक का भक्त था इसलिए नियतिवाद का दृढ श्रद्वालु या । एकबार वह अपने बगीचे म बैठा था। वहाँ आकागवाणी हुई-"कल यहाँ एक सर्वन, सर्वदी, त्रैलोक्य-प्रजित महापुरुष पधारेंगे । उनकी न वन्दना करना और अगनपानादि का निमत्रण देना।"
सद्दालपुत्र ने समझा कि ऐमा महापुरुष तो मेरे गुरु गोगाटक के अतिरिक्त कोई हो नहीं सकता परन्तु दूसरे दिन श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पवारे । आकागवाणी हुई थी, इसलिए महालपुत्र उनके दर्शन के लिए गया । उस समय भगवान् ने आकागवाणी की बात कही। इससे सद्दालपुत्र को आश्चर्य हुआ और उनके प्रति श्रद्धावान हुआ। फिर, उसने भगवान को अपने लिए आवश्यक वस्तुएं लेने का निमंत्रण दिया । ___ एक बार सद्दालपुत्र कच्चे बरतनी को धूप में मुखा रहा था। वहाँ भगवान पधारे और उससे कहा-'हे सहालपुत्र ! यह चरतन किस तरह बना ?" महालपुत्र ने कहा, 'भगवन् । पहले तो यह मिट्टी या । फिर उमे गूं कर चाक पर चढ़ाया गया, तब यह बरतन की शक्ल मे आया।"
भगवान ने कहा-"उममे उत्थान, कम, बल, वीर्य और पराक्रम की जरूरत पड़ती है या नहीं ?' इस प्रश्न से सहालपुत्र चमका, पर उसने अपने आजीविक-मिद्वान्त के अनुसार जवाब दिया कि, "भगवन् । उत्थान, कर्म, बट, वीर्य और पराक्रम विना ही वह नियति-रूप से बनता जाता है।"
भगवान् ने कहा-"हे सहालपुत्र | कोई आदमी तेरे इन बरतना को उठा ले जाये, फेंक दे, फोड़ डाले अथवा तेरी इम अग्निमित्रा भाया के साथ भोग भोगे तो त् उने सजा दे या नहीं ?”