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आत्मा का खजाना
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हो गये ! एक महातेजस्वी देव उसके सामने खडा था और कह रहा था""केशव ! यह सब देवमाया थी । तेरी अडिग प्रतिज्ञा से मै प्रसन्न हुआ हूँ, इसलिए तुझे तोन वरदान देता हूँ- आज से सातवें दिन तृ राजा होगा; तेरे शरीर के प्रक्षाल से हर रोग दूर हो सकेगा, तेरी हर उत्कट अभिलापा को मैं पूर्ण करूँगा ।" इतना कहकर देव अदृश्य हो गया ।
दूसरे दिन केशव एक नगर में दाखिल हुआ और वहीं पारणा को । ६ दिन वहाँ गुजारे । वह रात को सोया हुआ था, उस वक्त गाँव का नि. पुत्र राजा मरण को प्राप्त हुआ । मत्रियो ने पचढिव्य किया । हथिनी को सूँड में कला देकर लोग नये राजा की शोध में निकले । हथिनी चलते-चलते वहाँ आयी जहाँ केशव सो रहा था, और आकर कलश उसके सर पर द्वार दिया । इसी तरह और भी चार दिव्य हुए । इसलिए मंत्री उमे राजा स्वीकार करके राजमहल मे ले गये और उसे गद्दी पर बिठाकर विधिवत् उसका अभिषेक किया । इस प्रकार देवता का दिया हुआ प्रथम वरदान पूरा हुआ ।
कुछ दिनो बाद केशव नगर मे घूमने निकला, वहाँ उसने एक फटेहाल भिखारी - सरीखे बूढ़े आदमी को देखा । उसका चेहरा देखते ही वह पहचान गया कि वह उसका पिता है। दौडकर पैरो पडा और पूछा - "पिताजी ! यह क्या ?" पिता ने भी उसे पहचान लिया और बोला - "बेटा केशव । तू यहाँ कहाँ ?" केशव ने कहा- "मैं यहाँ का राजा हो गया हूँ।" फिर सब बात सुनायी । पिता ने कहा - "भाई । तूने अच्छा किया कि टेक न छोड़ी, जिससे कि ऐसे अच्छे दिन देखने का समय आया । मै तो जिस दिन से तू गया उस दिन से दुःखी दुःखी रहा हॅू । उस दिन तेरे भाई इस ने रात्रि भोजन किया, उसमे किसी जहरीले जन्तु की लार आ गयी, जिससे उसे कै-दस्त होने लगे । बहुत उपचार करने पर भी वह ठीक नहीं हुआ । उसका शरीर नीला पड़ गया और सारे शरीर मे वेदना होने लगी । बहुतेरे उपाय किये, मगर वह वेदना न मिटी । आखिर एक