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श्रात्मतत्व- विचार
भीलराजा की तीन रानियों का दृष्टान्त
तीन रानियो को साथ लेकर, भीलराजा प्रवास कर रहा था । गन्तव्य स्थान अभी बहुत दूर था। उस वक्त एक रानी ने कहा - " हे स्वामिन् ! प्यास से मेरा गला सूख रहा है, पानी ला दीजिये ।" दूसरी रानी ने कहा" हे नाथ ! मुझे बड़ी भूख लगी है, किसी प्राणी का शिकार कर लाओ, तो भूख मिटे ।" तीसरी रानी ने कहा - " अब तो चलते-चलते जी ऊब गया है, कोई सुन्दर गीत गाओ, तो चित्त प्रसन्न हो और रास्ता आमानी से कटे । "
भीलराजा ने तीनों रानियों की बात सुनने के बाद जवाब में इतना ही कहा कि 'सरो नत्थि' उससे तीनो रानियो को ऐसा लगा कि, उनके प्रश्न का जवाब मिल गया है ।
पहली समझी कि 'पास में कोई 'सर' यानी सरोवर नहीं है, पानी कहाँ से लाऊ, ऐसा कह रहे हैं । दूसरी समझी कि, तरकस में 'सर' यानी बाण नहीं है, शिकार कैसे करूँ, यह बता रहे हैं । तीसरी समझी कि 'सर' यानी स्वर नहीं है, गाऊँ कैसे ? यह मेरा जवाब है। इस तरह 'सर' शब्द के तीन अर्थ हुए : सरोवर, बाण और स्वर |
यहाँ 'उपयोग' शब्द का अर्थ है-वस्तु के बोध के प्रति आत्मा की प्रवृत्ति अथवा विपय की ओर अभिमुखता । शास्त्रकारो ने उसे ही जीव का' लक्षण माना है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाईसवें अध्याय में 'जीवो
* उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेद प्रति व्यापार्यते जीवोऽनेनेत्युपयोग । जिसके द्वारा जीव वस्तु के परिच्छेद यानी वोधके प्रति व्यापार करे, प्रवृत्त हो, वह उपयोग कहलाता हैं । अथवा उप यानी समीप, और योग यानी ज्ञान दर्शन का प्रवर्तन - जिसके द्वारा आत्मा ज्ञान दर्शन का प्रवर्तन करने के लिए श्रभिमुख होता है, उस चेतना, व्यापार को 'उपयोग' कहते हैं ।