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श्रात्मा का खजाना
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उसने चौथे पच्चीस रुपये दिये । उसने रुपये लेकर कहा - "कोई भी गुप्त बात स्त्री से न कहनी चाहिए ।"
मंत्री ने विचार किया -- "यह तो गजब हो गया ! अगर इतना रुपया खाने-पीने के लिये रखा होता तो कितना अच्छा होता " पर, घटना के बाद होशियारी किस काम की १ दुकानदार उसके चेहरे से समझ गया कि, इसे इन चार सलाहों मे सन्तोष नहीं हुआ, इसलिए उसने कहा - "क्यो भाई ! तुझे मेरी इन सलाहों पर विश्वास नहीं आता ? ये बातें जब तक विचार रूप में हैं, तत्र तक तुझे यही लगता रहेगा कि इनमें क्या है। पर, जब तू इनका अनुभव करेगा, तब इनको महत्ता समझेगा । फिर भी अगर तू पच्चीस रुपये और खर्च करे तो तुझे एक ऐसी चमत्कारिक वस्तु दूँ कि, जिसका फल तुझे अभी मिल जाये ।"
अब पच्चीस रुपये खर्चना माने जेब को मारी पूँजी साफ कर डालनी । इससे मंत्री बड़ी उलझन में पडा । पर 'मुँड़वाने बैठे है तो पूरी तरह मुड़वा ले', यह सोच कर उसने बाकी के पच्चीस रुपये भी उस दुकानदार को दे दिये । इस बार दुकानदार ने अपने पास से कुछ बोज निकाल कर रेती पर बिछाये और उनपर पानी डाला कि, तुरन्त शक्करटेंटो को बेलै फूट निकली और देखते-देखते उसपर सुन्दर मजेदार टेंटी भा गर्यो। टेंटी तोड कर मंत्री को खिलायीं तो अमृत-सी मीठी लगीं। फिर उस दुकानदार ने कहा- " इसमे खूबी तो यह है कि, इस तरह जो टॅटी पैदा होंगी, उनके बीज भी ऐसे ही उगेंगे ।" फिर उसके कुछ बीज उसने मंत्री को दिये। यह आखिरी चीज मंत्री को अच्छी लगी । इसलिए पैसे जाने का अफसोस बहुत कम हो गया । उसने विचार किया - 'अब परदेश जाने की जरूरत क्या है ? इस बीज की करामात से ही चाहे जितना पैसा पैदा किया जा सकता है । इसलिए घर की तरफ चला जाये ।'
वद घर की तरफ मुड़ा कि, पहली अक्ल सामने आ गयी कि 'सफर में