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आत्मतत्व-विचार
ज्ञान और दर्शन इस उपयोग के ही दो प्रकार है। नो उपयोग साकार यानी विशेषता वाला होता है, वह ज्ञान कहलाता है और जो उपयोग अनाकार यानी सामान्य प्रकार का होता है, उसे दर्शन कहते है।
आप यहाँ बैठे है और व्याख्यान सुन रहे हैं, इसलिए आपका उपयोग व्याख्यान में है, यह कहा जा सकता है । आप गरदन फिराये और यह देखे कि कौन आया, तो यह कहा जायेगा कि आपका उपयोग वहाँ गया । अथवा घडी की तरफ देखें और उसके कॉटे पर नजर रखें तो आपका उपयोग वहाँ गया समझा जायेगा। इस तरह आप कोई भी वस्तु सुने, देखें, सूंघे, चखे या छुएँ तब आपका उपयोग उसमे गया माना जायेगा। उसी प्रकार मन में कोई विचार करने लगे तो उपयोग उसमे गिना जायेगा। ____ हमारा उपयोग घूमता रहता है, एक ही वस्तु पर स्थिर नहीं रहता। अगर एक ही वस्तु पर स्थिर रहे, तो हमें ध्यान सिद्ध हो जाये और हमारा बेडा पार हो जाये, परन्तु छमस्थ आत्माओं को एक वस्तु का दर्शनोपयोग था जानोपयोग ज्यादा-से-ज्यादा अन्तर्मुहूर्त तक होता है उसमे दर्शनोपयोग की अपेक्षा ज्ञानोपयोग का समय संख्यात गुना ज्यादा होता है । केवलियो को दोनों उपयोग एक-एक समय के ही होते है।।
हमारा नान वृद्धि पाता है-वह साकार उपयोग या ज्ञानोपयोग का आभारी है। उसके सम्बन्ध में शास्त्रकार भगवंतों ने कहा है-सव्वाओ लद्धीओ सागारोव ओगवउत्तस्स, नो अनागारोवओगवउत्तस्स—केवल
* लोकप्रकाश में कहा है कि
समयेभ्यो नवभ्य स्यात् प्रभृत्यन्सर्मुहूर्नकम् ।
समयोनमुहूर्तान्तमसडख्यातविधं यत । 'नौ समयों से लेकर अन्तर्मुहूर्त का प्रारन्भ होता है और वह मुहूर्त यानी दे घडी में एक समय कम तक सब समयान्तरों पर लागू पडता है।' समय यानं जिसके कल्पना से भी दो भाग न किये जा सकें, ऐसा काल का निविभाज्य भाग ।