________________
ग्रात्मा का खजाना
११३
उवओग लक्खगो' आता है। और श्री उमास्वाति महाराज ने तत्त्वार्थस्त्र के दूसरे अध्याय में 'उपयोगो लक्षणम्' इम मूत्र से 'जीव का लक्षण उपयोग है', ऐसा कहा है।
जीव का लक्षण उपयोग है, इसका अर्थ यह है कि, हाएक जीव में उपयोग होता है और उससे वह वस्तु का सामान्य और विशेष बांध प्राप्त कर सकता है। यहाँ आप पूछेगे कि 'निगोद' के जीवों को भी उपयोग होता है क्या ? वे क्या जान सकते होगे? परन्तु नन्दीसूत्र में कहा है 'सब जीवों को अभर का अनन्तवा भाग प्रकट होता है, इसलिए उन्हे भी उपयोग होता है और वे भी कुछ जानते हैं।
यहाँ यह व्यान में रखिये कि, उपयोग सब जीवों को होता है, पर उन सबको समान नहीं होता। कर्म के क्षयोपशम के अनुसार वह कमोबेश होता है। टीपक पर खादी का मोटा कपड़ा का हुआ हो, तो उसमें ने आता हुआ प्रकाश बड़ा मन्द होता है। मादरपाट का कपड़ा टॅका हुआ हो तो उसमे से आता हुआ प्रकाश कुछ ठीक होता है और शरबती मलमल हॅकी हो तो उसमें से आता हुआ प्रकाग बहुत तेज होता है। इस तरह जिस आत्मा को कम का आवरण गाढा हो, उसका उपयोग कम होता है और जिसके कर्म का आवरण पतला हो उसका उपयोग ज्यादा होता है। आत्मा के बीच मे स्थित आठ रुचक-प्रदेश सर्वथा शुद्ध रहते है-उनपर कर्म का आवरण नहीं होता। यदि ये प्रदेश भी कर्म से ढंक जाते, तो जड पदार्थ में और बिलकुल निम्न स्तर के आत्मा में कोई अन्तर न रहता।
पूरी गाथा इस प्रकार है
वत्तहालक्खणो कालो, जीवो उवयोग लक्खयो।
नाणेण दसणेणं च, सुहेण य दुहेण य ॥ १० ॥ काल का लक्षण है वर्तना, और जीव का लक्षण है उपयोग । वह शान और दर्शन द्वारा तथा सुख और दुख के अनुभव द्वारा जाना जा सकता है ।