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श्रात्मतत्व-विचार
तो शरीर सब सम्बन्ध छोड़कर अलग हो जाता है, सामने देखता तक नहीं । सगे-सम्बन्धी, कुछ देर के लिए, जलाने आते हैं और दो ऑसू गिराकर वापस चले जाते हैं । जबकि, जुहारमित्रके समान धर्म - चाहे थोडा भी किया हो तो भी - परलोकमे साथ आता है और विपत्तियोसे रक्षण करके सुखशाति देता है । इसलिए, नित्यमित्र - सरीखे इस बेवफा शरीर का मोह छोड़िए और जुहारमित्र के समान परम वफादार धर्ममित्र की सुहबत कीजिये ।
शरीर से भी एक वस्तु अधिक मूल्यवान है और वह है आपको आत्मा ! जो वह न हो तो इस शरीर के रंगरूप की, लम्बाई-चौड़ाई की क्या कीमत है ? जब आत्मा शरीर को छोड कर चला जाता है, तब लोग क्या कहते हैं ? 'अब जल्दी करो' - काहे को जल्दी ? उस आत्मरहित शरीर को घर से बाहर निकालने की । ज्यादा वक्त जाये तो मुर्दा भारी हो जाये और उठाना मुश्किल हो जाये; इसलिए उसे जल्दी कफन में बाँधकर घर से स्मशान ले जाया जाता है । वहाँ उसे लकड़ी की चिता पर रखकर जला कर भस्म कर दिया जाता है। जिस शरीर को नित्य नये-नये भोजन कराकर हृष्टपुष्ट रखा जाता था, स्नान- विलेपन से स्वच्छ और सुगंधित रखा जाता था और जिसकी देख-रेख में धर्म की आराधना भी बिसार दी जाती थी, उस शरीर की अन्त में यह कैसी दशा !
आत्मा इस जगत को सबसे मूल्यवान वस्तु है ! लाखो-करोड़ों ही रे भी उसके सामने किसी बिसात में नहीं। फिर भी आप उसकी कितनी दरकार रखते है ? सच्ची बात यह है कि, आपको आत्मा की सच्ची कीमत नहीं मालूम | अगर सच्ची कीमत मालूम हो तो यह हालत न हो । कीमती वस्तु का मूल्याकन करना हो तो बुद्धि और अनुभव दोनो चाहिए ।
पेशवा नाना फड़नवीस बड़ा बुद्धिशाली माना जाता था । उसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे । एक बार एक सौदागर उसकी सभा मे आया और उसने एक पानीदार हीरा निकाल कर उसका मूल्य पूछा ।