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आत्मतत्व-विचार
पैसे की कमाई सच्ची कमाई नहीं है, क्योंकि उसमे से कुछ भी साथ नहीं जाता, हीरा-मोती के गहने या नोटो के बण्डल मे से कुछ भी साथ जानेवाला हो, तो कह देना। नहाँ दॉत कुरेदने की सलाई भी साथ नहीं ले जा सकते, वहाँ और वस्तुओ की बात क्या करना? साथ तो सिर्फ पुण्य और पाप जानेवाले हैं। अगर पुण्य की कमाई की होगी तो, गति भी अच्छी मिलेगी, शरीर भी अच्छा मिलेगा और सयोग भी अच्छे मिलेगे।
पुण्यशाली आत्मा का कैसा प्रभाव होता है, इस पर एक दृटान्त सुनिये :
पुण्यशाली आत्मा का प्रभाव एक गॉव का राजा अपनी सभा में बैठा था। वहाँ एक नैमित्तिक आया । नैमित्तिक अर्थात् अष्टाग निमित्त का जानकार-भविष्यवेत्ता ! राजा ने उससे पूछा-"भविष्यने क्या होनेवाला है ?” नैमित्तिक बोला-"हे राजन् । आगामी वर्ष वडा अकाल पडेगा। ऐसे ग्रहयोग हैं, इसलिए अनाज का भरपूर सग्रह कर रखना, जिससे कि प्रजा भूखी न मरे ?” __ राजा ने कहा-"मैं अनाज का सग्रह तो कर लें; लेकिन अगर सुकाल पडा और भावमें नुकसान हुआ तो?” नैमित्तिक बोला-"अगर मेरा वचन सच न निकले तो मेरी जबान खींच लेना, और तो क्या कहूँ।" राजा ने उसे नजर-कैद रखा और गॉव-गॉव से अनाज इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
लेकिन, जेठ महीने के बैठते-न-बैटते आकाश बादलो से घिरने लगा और बरसात बहुत अच्छी हुई। उस वर्ष अनाज इतना हुआ कि कुत्ते भी न खायें । राजा विचार करने लगा--"अनाज का जबरदस्त जत्था अब फेक देना पडेगा और इससे राज्य को बड़ा नुकसान सहन करना पड़ेगा। यह नुकसान उस नैमित्तिक की वजह से होनेवाला है; इसलिए उसे सग्न्त सजा देनी चाहिए।"