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आत्मा का मूल्य
१०७ इतने में एक जानी पुरुप उस गाँव मे पधारे। लोग उनका उपदेश सुनने के लिए उमड़ पडे । क्या उनका उपदेश ! क्या उनकी वाणी ! लोगो के आनन्द का पार नही रहा। यह बात राजा को मालम हुई, इसलिए वह भी उपदेश सुनने आया । उपदेश सुनकर उसके मन पर बडा असर हुआ और हृदय में भक्तिभाव जागा । फिर तो उपदेश मुनने रोज आने लगा।
एक बार राजा ने पूछा-'हे भगवन्त । नैमित्तिक बडा जानी था, फिर भी झूठा क्यो पडा ? उसके कहने के अनुसार अकाल तो नहीं पडा, पर सुकाल ऐसा पडा कि पूछिये नहीं ।” __गुरु ने कहा-"ग्रहो का योग ऐसा है कि, इस वर्ष अकाल पडना चाहिये था, पर एक सेट के यहाँ महापुण्यगाली आत्मा का जन्म हुआ, इसलिए अकाल मुकाल में बदल गया और सब खुशहाल हुए। उस वक्त व्याख्यान में वह सेठ भी हाजिर था, जिसके यहाँ उसका जन्म हुआ था। उसने गुरु महाराज के कथन का समर्थन करते हुए कहा-"उस लड़के का जन्म होने के बाद मेरी ऋद्धि-सिद्धि में बहुत वृद्धि हुई है। अब हम अत्यन्त सुखी और सन्तुष्ट है।"
फिर गुरु महाराज ने उस लड़के के पूर्वजन्म की बात कही-"यह लड़का पूर्वजन्म में भिखारी था। उसे अपने जीवन के प्रति अत्यन्त अरुचि थी । वह मेरे पास आया और किसी भी प्रकार उच्चावस्था मे लाने की याचना की । मैंने उसे नवकारमत्र सिखाया। साथ मे एक ग्लोक भी सिखाया और कहा कि, यह जिनेश्वर-देव की स्तुति है। जिनेश्वर-देव के मदिर मे रोज जाकर यह स्तुति करना और जो कुछ मिले उसका चौथा भाग गरीब-गुरबा को दे देना। ___ "भिखारी ने इस तरह करना शुरू कर दिया। रोज नवकारमत्र पढे, उस श्लोक को बोले और भिक्षा में जो कुछ मिले उसका चौथा भाग गरीबों को बॉट दे । अत्यन्त प्रतिकूल सयोगो में भी वह यह नियम