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आत्मतत्व-विचार
'पालता रहा । लोगो को मालूम हुआ कि, गुरुमहाराज ने एक भिखारी को श्रावक किया है और वह व्रत-नियम बराबर पालता है । इसलिए, वे उसे खाद्य पदार्थ ज्यादा परिमाण में देने लगे। फिर भी भिखारी ने अपना नियम न छोडा, जो पाता उसका चतुर्थाश गरीबो को बॉटता रहा ।
" इस तरह करते हुए उसके पास कुछ पैसा इकट्ठा हो गया । उससे धधा करना शुरू कर दिया और उसमें सफलता मिलती रही। कुछ ही समय में वह एक बड़ा व्यापरी बन गया । फिर भी वह अपने नियम को न भूला । उसे जो कुछ लाभ मिलता, उसका चौथा भाग गरीब-गुरबा को वॉट देता । इस तरह पुण्य का संचय होने लगा और अन्त में बडा पुण्य एकत्र हो गया । फिर, समाधिमरण के बाद, पुण्य के प्रभाव से उसने इस सेठ के यहाँ जन्म लिया।"
गुरु महाराज के मुख से यह बात सुनकर राजा ने नैमित्तिक को मुक्त कर दिया और भविष्यवाणी के लिए उसे पुरस्कृत भी किया। फिर राजा ने उस सेट से उसका पुत्र मागा, क्योकि उसे कोई वारिस नहीं था । इस तरह सेठ का पुत्र राजा का वारिस बन गया । उसके राजा बनने के बाद उस राज्य में न तो कभी अकाल पडा, न कभी बड़ा सङ्कट आया । पुण्यशाली आत्मा का प्रभाव ऐसा होता है !
समस्त लोक में ६ द्रव्य हैं। उसमें आत्मा ही चेतनयुक्त है, शेत्र सब जड़ हैं । इसलिए प्रधानता आत्मा की है। अगर आत्मा न हो, तो बाकी के द्रव्यो की क्या कीमत है ?
आप आत्मा का मूल्य बराबर समझें और उसके हित की ही प्रवृत्ति करें!