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आत्मतत्व-विचार
___ वहाँ से पहुंचा जुहार-मित्र के यहाँ! उसने कर्मचारी को देखते ही स्वागत किया और प्रेम से पूछा-'मेरे लायक क्या काम आ पड़ा ?" कर्मचारी ने सब हाल सुनाया और आश्रय की मॉग की। जुहार-मित्र ने कहा-"मेरा ऐसा सद्भाग्य कहाँ कि, मैं आपके काम आऊँ। फिलहाल खुगी से मेरे यहाँ रहिये, आपको किसी तरह की असुविधा न होने दूंगा।" । यह कहकर उसने कर्मचारी को आश्रय दिया ।
इस तरफ क्या हुआ वह भी देखिये ! छिछले पेट में कोई बात टिकती नहीं, अथवा यह कहिये कि दुष्ट दुष्टता दिखाये बिना नहीं रहता । उस नौकर ने कारवारी की बात गुप्त रखने के बदले राजा के सामने जाकर कह दी, जिससे कि उसका प्रिय बन सके और कुछ इनाम पा सके !
इस बात को मुनकर राजा के क्रोध का पार न रहा । उसने राजसेवकों को हुक्म दिया--"इस दुष्ट कर्मचारी को जहॉ-हो-वहाँ से पकड़ कर मेरे सामने हाजिर करो।" हुक्म सुनकर राजसेवक छूटे और कर्मचारी के बैठनेउठने के ठिकानो पर खोन करने लगे। यह करते हुए वे नित्य-मित्र के यहाँ आये । तब नित्य-मित्र ने कहा-"इस काले काम का करनेवाला कर्मचारी मेरे यहाँ आया था और आश्रय चाहता था, पर मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूँ कि उस-जैसे खूनी को आश्रय दूं, मेरे ख्याल से वह बहुत करके पर्व-मित्र के यहाँ गया होगा, इसलिए वहाँ तलाश कीजिये ।'
नित्य-मित्र ने संकट के समय सहायता तो की ही नहीं, बल्कि ऊपर से राजसेवकों के आगे उसकी बुराई करके आश्रय प्राप्त करने का सभावित स्थान भी बता दिया !
राजसेवक पर्व-मित्र के यहाँ पहुँचे । उसने कहा-"मैने कर्मचारी को आश्रय नहीं दिया। शक हो तो मेरा घर देख लो। वाकी उसके विषय में मैं कुछ नहीं जानता।"
अब राजसेवक किसी से खबर पाकर जुहार-मित्र के यहाँ गये और । धमका कर कहने लगे-"तुमने कर्मचारी को आश्रय दिया है, यह अच्छा