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पुनर्जन्म
कहा है कि पुण्य-पाप का या अच्छे-बुरे कर्मों को भोगने के लिए जीव को अमुक गति में उत्पन्न होना पड़ता है-यह पुनर्जन्म के बिना कैसे सभव हो सकता है ? विशेषत: उन सर्वन महापुरुपो ने अपने पूर्व भवो का वर्णन विस्तार से कहा है। उससे भी पुनर्जन्म की पुष्टि होती है। अगर, पुनर्जन्म-जैसी कोई वस्तु ही न हो तो ये महापुरुष पूर्वभवो का वर्णन क्यो करें?
कोई भी वलु तीन प्रकार से सिद्ध होती है-श्रुति से (शास्त्रप्रमाण से), युक्ति से ( तर्फ से) और अनुभूति से ( अनुभव से) इनमें से श्रुति की बात हम कर गये। अब आये युक्ति पर !
पुनर्जन्म मानने के कारण 'पूर्वजन्म की बात याद नहीं है। इसलिए पुनर्जन्म नहीं है, ऐसा कहनेवालो से हम पूछ सकते है कि, आपको गर्भ की बात याद है क्या ? अगर गर्भ की बात याद है तो बतलाइये । वे क्या जवाब देंगे? गर्भ की बात याद नहीं है । गर्भ की बात स्मरण नहीं है, पर आप गर्भ को मानते है या नहीं ? आप गर्भ में से पैदा हुए या इस जगत में यूं ही चू पड़े ?
इस जगत में जितने मनुष्य जन्मे है, वे सब माँ के पेट में थे। नीचे सर और ऊपर पग, इस तरह नौ मास से भी अधिक समय तक उसने लटके रहे थे। वह थी, अधेरी कोठरी! और, उसमें ऐसी उत्कट गर्मी थी कि अनाज को भी पचा दे | उपरात उसमें ऐसी दुर्गध थी कि मुंह फेर लिया जाये ! बिलकुल जकड़े रहना होता था--न हाथ लम्बा होता था न पैर सिकोडा जा सकता था । पर, गर्भ में से बाहर आने के बाद एकदम पल्टा हुआ और हम वह सब भूल गये। क्या इससे यह कहा जा सकता है कि हम गर्भ में थे ही नहीं ?
अगर मनुष्य को गर्भावस्था का वह दुःख याद रहे, तो फिर वह गर्भ