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श्रात्मतत्व-विचार
वे दोनो चरुओ को माता के पास ले गये । माता को लगा कि उपाधि बढ़ी। उसने पूछा - "बेटो | यह चरू किसका है " पुत्रो ने कहा'उसके मालिक की खबर नहीं है ।' माता ने कहा - 'जैसे इसका धनी इसे छोड गया, वैसे ही तुम्हे भी इसे छोड़ जाना पड़ेगा या नहीं ?" पुत्र इस वचन का मर्म समझ गये । उन्होने वह चरू जमीन में नहीं गाड़ा, बल्कि उसके धन को खुले हाथों सुकृत में लुटानी शुरू कर दी और भी बहुत सा धन अच्छे कामो में खर्च करके दानेश्वर कहलाये । तात्पर्य यह कि, निमित्त मिलने पर मनुष्य के सस्कारो में परिवर्तन हो सकता है ।
सस्कार से स्वभाव बनता है और स्वभाव के अनुसार प्रवृत्ति होती है । इस प्रकार बालको के पृथक-पृथक स्वभाव और भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियो का रहस्य पूर्वजन्म के सस्कारो में हैं। इस तरह की युक्ति से भी पुनर्जन्म सिद्ध होता है ।
पुनर्जन्म का हाल सुनानेवाले, मिलते हैं
अब आइये अनुभूति पर इस जगत में प्रत्येक काल में ऐसे अनेक । मनुष्य मिलते रहे हैं, जिन्हे कि पूर्वभव का ज्ञान होता है । आधुनिक युग में भी ऐसे उदाहरण देखने में आते है और वे समाचारपत्रों में प्रकट होते रहते हैं । आप में से बहुतो ने उन्हें पढा होगा । प्रश्न - पर ऐसे उदाहरण कितने है ?
उत्तर- ऐसे उदाहरण भले ही लाखो में दो-चार हों, पर वे पुनर्जन्म को सिद्ध करते हैं । इसलिए उनकी महत्ता बहुत है । ऐसा एक उदाहरण मुझे याद है, आपको सुनाते हैं :
पाटन के पास वाणस्मा नामक एक गाँव है । वहाँ एक लडके को पूर्वभव का ज्ञान हुआ । उसने कहा - " मै पूर्वभव में पाटन नगर के अमुक मुहल्ले में रहता था । मेरा नाम केवलचन्द था ।" इस बात की