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आत्मा की संख्या
___सख्या-विषयक यह जानकारी मन में रखकर, हम आत्मा की संख्या पर आये । इस विश्व में मनुष्यों की संख्या कम है, अर्थात् मध्यम सख्यात है। देव और नरक के जीवो की सख्या उससे असख्यात गुनी है और तिर्यच की सख्या अनन्त गुनी है । यहाँ तियच शब्द से जलचर, थलचर और नभचर पचेन्द्रिय प्राणी ही नहीं, एकेन्द्रिय, दो-इन्द्रिय, तीन-इन्द्रिय और चार-इन्द्रिय भी समझने चाहिए ।
एकेन्द्रिय के पॉच भेट है-पृथ्वीकाय, अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय । इसमें पहले चार प्रकार के जीव सूक्ष्म और बादर दो जाति के है । वनस्पतिकाय को दो जातियाँ हैं : (१) प्रत्येक और (२) साधारण । इनमें प्रत्येक-वनस्पति एक गरीर में एक जीववाली है, जबकि साधारण-वनस्पति एक गरीर मे अनन्त जीव वाली है। साधारण बनस्पति के जीवो के शरीर को ही 'निगोट' कहते है। उसमे प्रत्येक-बनस्पति बादर ही होता है और साधारण-वनस्पति अथवा निगोद सूक्ष्म और बादर दोनो प्रकार की होती है।
शास्त्रकार-भगवती ने निगोट के विषय में कहा है कि
गोला य असंखिज्जा, अस्संख निगोप्रो हवई गोला। एक्केकम्मि निगोए, अणंत जीवा मुणेयव्वा ॥
यह विश्व यानो चौदह राजलोक असख्य (सूक्ष्म ) गोलो से व्याप्त है। हर एक गोले में असख्य निगोट है और हर निगोद में अनन्त जीव हैं. ऐसा समझना।
,,, अर्थात् अकेले साधारण-वनस्पनिकाय के जीवो की संख्या ही अनन्तानन्त है । उसमें दूसरे चाहे जितनी आत्माएँ बढा दी जाये, तो भी यह