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सातवाँ व्याख्यान
आत्मा का मूल्य
महानुभावो !
श्री उत्तराध्ययनसूत्र के छत्तीसवें अध्ययन का अल्प-ससारी आत्मा का वर्णन हमारे विषय की मूल पीठिका है। आत्मा के स्वरूप को अच्छी तरह समझ लेने पर ही इस पीठिका पर आपकी दृष्टि स्थिर होगी । तत्र आप भी अल्प- ससारी आत्मा के गुणो का विकास कर इस भयकर ससारसागर को शीघ्र पार कर सकते हैं । इसीलिए, हम आत्मा के स्वरूप पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे है ।
जिन-वचन हमारे लिए अन्तिम शब्द है । ऐसा होनेके बावजूद हम युक्ति और उदाहरण भी काफी देते हैं, ताकि आपके मन में उठती हुई शकाओ का समाधान हो और आप निःाक होकर आराधना मे आगे बढ सके ।
आप व्यापारी हैं और हर वस्तु का मूल्याकन करते हैं। अधिक मूल्यवान वस्तु को अधिक महत्त्व देते है और उसकी प्राप्ति में आनन्द मानते हैं । जिसके पास ताँबा है, वह चाँदी से आनन्द पाता है । जिसके पास चॉदी है, वह सोने से आनन्द पाता है । जिसके पास सोना है, वह मणि-मुक्ता से आनन्द पाता है । ज्यादा कीमती चीज आपको ज्यादा आनन्द देती है ।
परन्तु, दुनिया की महामूल्यवान वस्तुओं से भी आपका शरीर अधिक मूल्यवान है । कोई आपको मुट्ठी भर हीरा दे और बदले में कान या नाक या हाथ या पैर मॉगे तो क्या आप दे देगे ?
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