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- श्रात्मतत्व-विचार
यह जानकर साले दूसरे कमरे में जीमने के लिए चले गये । खुद को भूखा रखकर सेठ ने जीमना शुरू कर दिया, यह देखकर जाट का सिर फिर गया । जाट तो जाट ही है। उसने फेट बॉधी और हाथ में डॉग ली, और सेठ के पास जाकर बोला - "तुमने झूटा वायदा किया और शर्त तोडी है: इसलिए उसका फल चखने के लिए तैयार हो जाओ ।'
सेठ भी कच्ची गोलियॉ खेले हुए नहीं था । वह जानता था कि, इस गॅवार ने अभी तक बफी पेडा का स्वाद नहीं लिया, इसलिए 'गुड-रात्र, गुड़-राब' रट रहा है। पर, एक बार उसका स्वाद चखेगा तो सत्र भूल जायेगा । इसलिए वह उठा और जाट की थाली में से बर्फी का एक बडा टुकड़ा लेकर जाट की गरदन पकड़ कर उसके बोलने के लिए खुले हुए मुँह में हॅूस दिया । अब जाट उस टुकड़े को मुँह में से बाहर निकालने की कोशिश करे, उससे पहले तो उसका स्वाद उसकी जीभ को लग गया था। इमलिए, उसका गुस्सा ठंडा पड गया और वह समझदार आदमी की तरह अपनी जगह बैठ गया । सेठ भी अपनी जगह बैठ गया ।
सेठ ने अभी दो-तीन ग्रास गले उतारे होगे कि, वहाँ उस जाट की थाली में परोसा हुआ सब खत्म | सेठ ने सब चीजे दूसरी बार मॅगार्थी और खुद थोडा बहुत जीमा, लेकिन जाट की थाली फिर खत्म ! इस तरह सेठ जीमा तब तक जाट चार थाली भरकर मिठाई सफाचट कर गया ! अब वह सेट पर बहुत खुश था । उसने अपनी मूछ मरोडते हुए कहा - " सेठ ! अब जब भी तुमको सुसराल आना हो तो मेरे गॉव कहलवा देना, तो मै गाड़ी जोतकर आधी रात को भी चला आऊँगा और तुमको सुसराल अच्छी तरह पहुॅचा दूँगा ।”
सेठ पर जाट की इस कृपा वृष्टि का कारण उत्तम प्रकार की मिठाइयो
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का लाभ था ।
आत्मा का भी ऐसा ही है । उसने दुनियावी सुखों की गुड़- राव का स्वाद तो लिया है; पर आत्मिक सुखो की मिठाइयों का स्वाद नहीं