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आत्मतत्व-विचार
दिया, मकान-मिल्कियत दी, सुन्दर जरी के वस्त्र पहनाये, पर जब वह सुकुमारी से मिला, तब उसका अत्यन्त अनिष्ट स्पर्श क्षण भर के लिए भी न सह सका और सब छोड़कर भाग गया।'
इन्द्रियाँ चपल घोडो के समान है। उनके बहकाये में तो आप कहासे-कहाँ पहुँच जायेंगे। उन्हें तो जिनेश्वर के आदेशरूपी डोरे में बाँध रखेंगे तभी ठिकाने लगेगी। जो इन्द्रियो के विषय में ललचाया उसे डूवा समझिए । उनसे दूर भागना ही अच्छा है। __ इन्द्रियो के सुख गुड़-राव-सरीखे है और आत्मिक सुख वी-पेडासरीखे है । इस पर एक दृष्टान्त सुनिये।
सेठ और जाट का दृष्टान्त मारवाड़ का एक व्यापारी सेठ सुसराल जाने के लिए निकला । सुसराल पॉच कोस दूर थी। सुबह चलना शुरू किया । दस बजे दाई कोस पहुंचा.। अब सर पर धूप और नीचे गरम रेती थी। इस मरुभूमि में आक और कैर के छोटे-छोटे पेड़ो के सिवाय कोई पेड दिखायी नहीं देगा। आक की छाया तो उसी में समा जाती है । सेठ उलझन में पडा । आगे कैसे चला जाये ? उसने पीछे देखा तो एक जाट को गाड़ी चली आ रही थी। उसे खड़ी करके सेठ से पूछा-'कहाँ जाना है ?' उसने जवाब दिया"अगले गॉव" । सेठ ने कहा-"मै थक गया हूँ, अपनी गाडी में बैठने दोगे?" ___ जाट ने भी सेठ की इस स्थिति का लाभ लेते हुए पूछा-"क्या ढोगे ?” "तुझे क्या चाहिए ?" सेठ ने पूछा जाट ने इशारे से कहा-"खाना !" सेठ तो जमाई के तौर पर जानेवाला था, इसलिए उसने 'हाँ' कह दी। उसने कहा-"छाछ-रोटी नहीं चलेगी। गुडराब दो तो ले चलूं।"
१-द्रोपदो पूर्व भव में सुकुमारिका नाम की यनिक-पुत्री थी। उसीकी यह कथा है।