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आत्मा की अखण्डता लिया। उसे अगर सेट-सरीखा कोई गुरु मिल जाये और आत्मिक सुख का स्वाद लगा दे तो फिर वह उन दुनियवी पुखो की गुड-राव की तरफ देखे भी नहीं । कारण कि वे सुख उसे बरबाद करनेवाले हैं, दुर्गति में ले जानेवाले हैं।
जिस चीज का रस लगना चाहिये, वह न लगे यही तो 'उपाधि' है । आपको अच्छा-अच्छा खाने का, पहनने का, अच्छी जगह में रहने का, ससार मॉडने का रस लगता है; पर रस तो जान, दर्शन और चारित्र रूपी तीन रत्नो का लगना चाहिये।
गुरु ऐसा रस लगाने के लिए मत्र-सिद्धान्त का व्याख्यान करते है और तत्त्वज्ञान का विषय परोसते हैं, उस समय भाग्यशालिओ की हालत कैसी होती है, सो देखो।
निद्रा की छातीपर चढ़ बैठनेवाले सेठ का दृष्टान्त
गुरु महाराज का व्याख्यान चल रहा था। उस समय एक सेट को आने में सहज देर हो गयी; लेकिन नेता होने के कारण उन्हे आगे बिठाया गया । तब तक काफी विषय चल चुका था और तत्त्वज्ञान की सृध्म बातें छन रही थी, इसलिए सेठ उन्हें नहीं समझ सके। उनकी ऑखें नींद से घिरने लगी। यह देखकर गुरु महाराज ने पूछा-'क्यो सेठ ! ऊँघते हो ?
सेठ जरा विनोदी थे । उन्होने कहा : 'गुरुदेव ! मैं ऊँघता नहीं हूँ, पर निद्रा देवी आने के लिए तैयारी कर रही है, इसलिए मै आँख के दरवाजे बन्द कर रहा हूँ।'
व्याख्यान आगे चला और सेट झोके खाने लगे। यह देखकर गुरु महाराज ने फिर पूछा-"क्यो सेठ ! झोके खाते हो ?” तब सेठने कहा-"गुरुदेव ! मै झोके नहीं खा रहा, पर निद्रा देवी मुझसे पूछती है कि मैं अन्दर आ जाऊँ ? तो मैं उससे कह रहा हूँ कि आजा "