Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३०
पंच णव दोण्णि अठ्ठावीसं चउरो कमेण तेणउदी।
दोण्णिय पंच य भणिया, एदाओ सत्तपयडीओ॥३८॥ अधं - पाँच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण, दो वेदनोय, अट्ठाईस मोहनीय, चार आयु, तिरानवे | नामकर्म, दो गोत्र और पाँच अन्तराय ये १४८ प्रकृतियाँ सत्त्वयोग्य हैं।
आगे घातियाकर्म में सर्वघाति-देशघातिरूप जो दो भेद हैं, उनमें सर्वप्रथम सर्वघातिरूप । कर्मप्रकृतियों को कहते हैं -
केवलणाणावरणं दसणछक्कं कसायबारसयं ।
मिच्छं च सव्वघादी सम्मामिच्छं अबंधम्हि ॥३९॥ अर्थ - केवलज्ञानावरण, दर्शनावरण की छह, बारहकषाय एवं मिथ्यात्व ये २० प्रकृतियाँ बन्ध | की अपेक्षा सर्वघाती हैं, किन्तु सन्यग्मिथ्यात्वप्रकृति अबन्ध की अपेक्षा सर्वघाती है।
विशेषार्थ - केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, स्त्यानगृद्धि आदि ५ निद्रा तथा अनन्तानुबन्धीअप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान क्रोध-मान-माया-लोभ ये १२ कषाय और मिथ्यात्व ये २० बन्धयोग्य प्रकृति सर्वघाती हैं। तथा सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति किंचित् सर्वघाती तो है, किन्तु बन्धयोग्य नहीं है, उदय और सत्त्व में जात्यंतररूप से सर्वघाती है अत: उदय और सत्त्व की अपेक्षा २१ प्रकृतियाँ सर्वघाती हैं। अथानन्तर देशघात्ति प्रकृतियों को कहते हैं -
णाणावरण चउक्कं तिदसणं सम्मगं च संजलणं ।
णव णोकसाय विग्धं छन्वीसा देसधादीओ॥४०॥ अर्थ - ज्ञानावरण की चार, दर्शनावरणकी तीन, सम्यक्त्व प्रकृति, सज्वलनकी चार, नव नोकषाय एवं ५ अन्तराय की ये २६ प्रकृतियाँ देशघाती हैं।
विशेषार्थ - मति-श्रुत-अवधि-मन:पर्यय ये चार ज्ञानावरण, चक्षु-अचक्षु-अवधि ये तीन दर्शनावरण, सम्यक्त्व तथा सञ्चलन क्रोध-मान-माया-लोभ, हास्य-रति-अरति-शोक-भय-जुगुप्सास्त्रीवेद, पुंवेद-नपुंसकवेद ये १४ मोहनीय, दान-लाभ-भोग-उपभोग और वीर्य ये पाँच अन्तराय की, इस प्रकार सर्वमिलकर २६ प्रकृतियाँ देशधाती हैं।
शंका - इन २६ प्रकृतियों को देशघाती क्यों कहा? समाधान - ये २६ प्रकृतियाँ जीवगुणों का पूर्णरूप से घात नहीं करतीं अतः ये देशघाती हैं।