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आदिपुराण
विषय
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पृष्ठ श्रीधरदेव ने स्वर्ग से चय कर जम्बूद्वीप-पूर्व
लौकान्तिक देवों से प्रतिबोधित होकर दीक्षित विदेह-महावत्सकावती देश के सुसीमा नगर हो गये
२३०-२३१ में सुदृष्टि राजा की सुन्दरनन्दा नामक रानी
वज्रनाभि का राज्यवर्णन, चक्ररत्न की उत्पत्ति के गर्भ से सुविधि नाम का पुत्र हुआ २१८ तथा दिग्विजय वर्णन, केशव का जीव धनदेव.. सुविधि का नख-शिख वर्णन २१८-२२० चक्रवर्ती वजनाभि के गृहपति नाम का पुत्रसविधि ने पिता के उपरोध से राज्य ग्रहण
रत्न हुआ
- २३१-२३२ किया तथा अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनो- बज्रनाभि ने वज्रदन्त नामक पुत्र को राज्य रमा के साथ पाणिग्रहण किया। वज्रजंघ के सौंपकर अनेक राजाओं, पुत्रों, भाइयों और भव में जो श्रीमती था वही जीव इन दोनों धनदेव के साथ दीक्षा ग्रहण की। मुनिराज के केशव नाम का पुत्र हुआ। शार्दूल आदि वज्रनाभि ने अपने गुरु के निकट दर्शनविशुद्धि के जीव भी इन्हीं के निकट उत्पन्न हुए २२०-२२१ आदि सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन इन सब साथियों तथा चक्रवर्ती ने अनेक
कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। तपरराजाबों के साथ विमलवाह मुनिराज के पास चरण के प्रभाव से अनेक ऋद्धियां प्राप्त हुई, जाकर दीक्षा ले ली परन्तु सुविधि राजा पुत्र
और आयु के अन्त में प्रायोपगमन संन्यास के स्नेहवश गृहत्याग नहीं कर सका अतः गह धारण किया। संन्यासमरण का वर्णन । आयु में ही श्रावक के व्रत पालता रहा और अन्त में के अन्त में प्राण परित्याग कर सर्वार्थसिद्धि दीक्षा लेकर समाधि के प्रभाव से सोलहवें विमान में उत्पन्न हुए
२३२-२३७ स्वर्ग में अच्युतेन्द्र हुआ
२२१-२२२ सर्वार्थसिद्धि विमान और उसमें अहमेन्द्र आयु के अन्त में केशव भी तपश्चरण के प्रभाव वज्रनाभि की उत्पत्ति का वर्णन, अहमेन्द्र की से उसी अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ। शार्दूल
विशेषताएँ
२३७-२४१ आदि के जीव भी यथायोग्य उसी स्वर्ग में देव
| सर्वार्थसिद्धि के प्रवीचारातीत सुख का हए। अच्युतेन्द्र की विभूति तथा देवियों आदि
समर्थन
२४६-२४८ का वर्णन
२२२-२२६ एकादश पर्व मंगल
२२७ | पूर्वोक्त अहमेन्द्र ही भगवान् आदिनाथ हो गये, वनजंघका जीव अच्युतेन्द्र जब स्वर्ग से चय जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की दक्षिण दिशा में कर जम्बूद्वीप पूर्व-विदेहक्षेत्र पुष्कलावती देश
अन्तिम कुलकर नाभिराज थे। उनकी मरुकी पुण्डरीक नगरी में राजा वज्रसेन और
देवी नाम की अत्यन्त सुन्दरी स्त्री थी। रानी थीकान्ता के वज्रनाभि पुत्र हआ।
उसका नखशिख वर्णन
२४६-२५५ उसके अन्य साथी भी वहीं पैदा हुए । केशव नाभिराज और मरुदेवी से अलंकृत स्थान पर का जीव उसी नगरी के कुबेरदत्त और स्वर्ग से आये हुए इन्द्र ने सर्वप्रथम अयोध्याअनन्तमति नामक वैश्य दम्पती के धनदेव पुरी की रचना की, उसकी शोभा का वर्णन नाम का पुत्र हुआ २२७-२२८
२५५-२५७ बचनाभि का नख-शिख वर्णन २२८-६३० शुभ मुहूर्त में देवों ने नाभिराज का उस नववनसेन महाराज वजनाभि का राज्याभिषेक नगरी में प्रवेश कराया। जब भगवान् कर संसार से विरक्त हो गये । और फिर । ऋपभदेव को जन्म लेने में छह माह बाकी थे,
द्वादश पर्व