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६४२।
आदिपुराणम
श२०
२।११९
...
तत्व के ३ भेद-१ मुक्त जीव लोकमूढ़ता
त्याग २ लोभत्याग ३ भय... २ संसारी जीव ३ अजीव
९।१२२
त्याग ४ हास्यत्याग और २४/८७ 'प्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम
५ मूत्रानुगामी-शास्त्रके तस्वार्थ-जीव, पुद्गल, धर्म,
११.३३
अनुसार वचन बोलना ये अधर्म, आकाश और काल
पांच सत्य व्रतकी भावना है त्रिषष्टिपुरुष-२४ तीर्थकर १२ । - ये छह तत्त्वार्थ है। इन्हीं
२०११६२ चक्रवर्ती ९ नारायण ९ को छह द्रव्य कहते हैं
प्रतिनारायण ९ बलभद्र ये
- इम्यलेश्या-शरीरका रूप रंग । २४.८५ त्रिषष्टि पुरुष ६३ शलाका. .....
इसके ६ भेद हैं-१ कृष्ण तन्नुचारण-चारणऋद्धिका एक
२ नील ३ कापोत ४ पोत पुरुष कहलाते हैं भेद
५ पद्म ६ शुक्ल २०७३
१०.९६ त्रैकाल्य-भूत भविष्यत्, वर्तमान तीर्थकृत्-धर्मके प्रवर्तक तीर्थकर
इम्यानुयोग - शास्त्रोंका भेद,
काल हैं, भरत और ऐरावत क्षेत्रमें
जिसमें द्रव्योंके स्वरूपका इनकी संख्या २४-२४
वर्णन रहता है होती है, विदेह क्षेत्रमें २०
२।१०७ होते हैं
दण्ड-चार हाथका एक दण्ड मुख-जो नदीके किनारे २।११७ होता है
बसा हो ऐसा ग्राम
१६।१७३ नुटिकाब्द-संख्याका एक प्रमाण
१९।५४ ३।१०४ दर्शन-पदार्थोंको अनाकार-निर्वि
धनुष-चार हाथका एक धनुष तूांग-बाजोंको देनेवाला एक कल्प जानना
__ होता है कल्पवृक्ष
२४॥१.१
१०१९४ ३२३९
दर्शनमोह-मोहनीयकर्मका एक धर्म-जो जीव और पुद्गलको नृतीय व्रतको भावना
:: भेद जो सम्यग्दर्शन गुणको गतिमें सहायक हो १ मिताहार ग्रहण २ उचि- घातता है
२४|१३३ ताहार ग्रहण ३ अभ्यनुज्ञात
९।११७
धर्मचक्र-तीर्थकरके केवलज्ञान ग्रहण ४ विधिके विरुद्ध दर्शनोपयोगके ४ भेद
हो चुकनेपर प्रकट होने आहार ग्रहण नहीं करना १ चक्षुदर्शन २ अचक्षुदर्शन वाला देवोपनीत उपकरण ५ प्राप्त आहार पानमें ३ अवधिदर्शन ४ केवलदर्शन
इसमें एक हजार अर होते सन्तोप रखना
२४।१०१
हैं और वह सूर्यके समान २०१६३ दीपांग-दीपकोंको देनेवाला एक
देदीप्यमान रहता है,विहारप्रायविंश-देवोंका एक भेद
के समय तीर्थकरके आगेकल्पवृक्ष २२।२५
आगे चलता है त्रिोध-तीन जान १ मतिज्ञान
१११ दशावधि-अवधिज्ञानका एक भेद २ तज्ञान और ३ अवधि
धर्म्यध्यान-ध्यानका एक भेद ।
२०६६ जान । ये तीन ज्ञान तीर्थ
इसके चार भेद है १ आशादुःषमा-अवसर्पिणीका पाषा करके जन्मसे ही होते हैं
विचय २ अपायविषय काल
३ विपाकविषय ४ संस्थान
३।१८ त्रिमना-देवमाता, गुरुमूढ़ता, | द्वितीयवतमावना-१ क्रोध ।
विंचय
२१११३३-१६७