Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 733
________________ पारिभाषिक शब्दसूची ६४३ . पाह जीवोंका वाचक है परमावधि-अवधिज्ञानका भेद नय-जो वस्तु के एक धर्म । निर्यापक-सल्लेखना -समाधि २०६६. (नित्यत्व-अनित्यत्व आदि) की विधि करानेवाला- परमेष्ठो-अरहन्त, सिद्ध, पाचार्य, को विवक्षावश क्रमसे निर्देशक उपाध्याय और साधु ये ५ ग्रहण करे, वह ज्ञान । यह ५।२३ परमेष्ठी कहलाते हैं द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, निवेद-संसार - शरीर और ५।२३५ निश्चय, व्यवहार आदि के भोगोंमें विरक्तता पर्याप्त-जिनके शरीर पर्याप्ति भेदसे अनेक प्रकारका १०११५७ पूर्ण हो चुके हैं होता है। निवेदिनी-वैराग्यवर्धक कथा १०.३५ २।१०१ १।१३६ पर्व-संख्याका एक भेद नयुत-संख्याका एक भेद नैःषाय व्रतमावना-बाह्याभ्य ३२१४७ ३।१३५ न्तर भेदसे युक्त पञ्चेन्द्रिय | परिग्रहपरिच्युति-परिग्रह त्याग नयुतांग-संख्याका एक भेद सम्बन्धी सचित्त अचित्त नामक नौवीं प्रतिमा, इसमें ३।१४० विषयों में अनासक्ति आवश्यक वस्त्र तथा निर्वाहनलिन-संख्याका एक प्रमाण २०११६५ योग्य बरतनोंके सिवाय सब परिग्रहका त्याग हो जाता है। नवकेवल लधियाँ-१ क्षायिक । पम्चास्तिकाय-१ जीव २ पृद् १०।१६० ज्ञान २ क्षायिकदर्शन ३ गल .३ धर्म ४ अधर्म पल्य-असंख्यात वर्षोंका एक क्षायिक सम्यक्त्व ४क्षायिक ५ आकाश पल्य होता है चारित्र ५ क्षायिक दान २४९० ६ क्षायिक लाभ ७ क्षायिक पत्तन-जो समुद्रके पास बसा पारिषद-वेवोंका एक भेद भोग ८ क्षायिक उपभोग हो तथा जिसमें नावोंसे २२।२६ ९क्षायिक वीर्य उतरना-चढ़ना होता है पुद्गल-वर्ण, गन्ध, रस और २०१२६६ १६।१७२ स्पर्शसे सहित द्रव्य नवपदार्थ-जीव, अजीव, आस्रव, - पदानुसारिन्-पदानुसारी ऋद्धिके २४॥१४५ .. बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, धारक पुद्गलके छह भेद-१ सूक्ष्मसूक्ष्म पुण्य और पाप ये नौ २०६७ २ सूक्ष्म ३ सूक्ष्मस्थूल ४ पदार्थ है पदार्थ-जीव, अजीव, आस्रव, स्थूलसूक्ष्म ५ स्थूल ६ स्थूल२।११८ बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, निधेप-नय और प्रमाणके अनु- पुण्य, पाप ये नौ पदार्थ २४.१४९ . सार प्रचलिन लोकव्यवहार कहलाते हैं . पुर-जो परिखा, गोपुर, कोट २॥१.१ ----- तथा अट्टालिका आदिसे निगोत (निगोद)-साधारण प-संख्याका एक भेद सुशोभित हो, बाग-बगीचे बनस्पति काय, जिसके आ ३।११८ और जलाशयसे सहित हो श्रित अनन्त जीव रहते हैं। परग्राम-जिसमें पांच सौ घर १६।१६९.१७. इसका दूसरा नाम निगोद हों तथा सम्पन्न किसान हों पुष्पचारण-चारणऋद्धिका एक प्रसिद्ध है। इसी प्रकार इसकी सीमा २ कोशकी का एक निकोत शब्द भी होती है। २०७३ आता है जो कि सम्मूर्छन । १६।१६५ | पूर्वकोटी-एक करोड़ पूर्व चोरासी ९।१२१ भेद

Loading...

Page Navigation
1 ... 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782