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आदिपुराणम्
निवति
पायान्तर ।
शुक्लध्यान-ध्यानका एक भेद सत्संख्याधनुयोग-१ सत् २ । सम्यग्ज्ञान-जीवादि पदार्थोंको
इसके चार भेद हैं १ पृथक्त्व संख्या ३ क्षेत्र ४ स्पर्शन ५ यथार्थताको प्रकाशित वितर्कवीचार २ एकत्व काल ६ अन्तर ७ भाव
करनेवाला ज्ञान वितर्क ३ सूक्ष्मक्रियाप्रति- और ८ अल्प बहुत्व
२४।११८ पाति और ४ व्युपरतक्रिया
२४.९७
सम्यग्दर्शन-सच्चे देव-शास्त्र. सदर्शन-दर्शन प्रतिमा श्रावककी गुरुका श्रद्धान अथवा २१११६६.२०० | पहली प्रतिमा जिसमें आठ । जीवादि सात तत्त्वोंका श्रद्धा-सम्यग्दर्शनका पर्यायान्तर मूल गुणोंके साथ सम्यग्दर्शन . श्रद्धान नाम धारण करना पड़ता है
९।१२१,-१२२ ९।१२३
१०।१५९
सपिःस्राविन्-घतस्राविणो ऋद्धिश्रमण संघके चार भेद-१ ऋषि
सप्तांग-कथामुखके निम्नलिखित के धारक २ मुनि ३ यति ४ अनगार सात अंग हैं-१ द्रव्य २
२०७२ २५।६
क्षेत्र ३ तीर्थ ४ काल ५ । सर्वतोभद्र-एक प्रतका नाम श्रुतकेवली-पूर्ण श्रुतज्ञानके धारक भाव ६ महाफल और
७.२३ प्रकृत
सर्वावधि - अवधिज्ञानका एक २०६१
१।१२२ श्रुतज्ञान-एक व्रतका नाम, इसकी सप्ताम्बुधि-सात सागर
२०६६ विधि ६ठे पर्वके १४६ से - १५१ श्लोक तक है
५।१४३
सौंषधि-एक ऋद्धि ६।१४१ समता-सामायिक नामक तीसरी
२०७१ श्रुतज्ञानविधि-एक तप
प्रतिमा, इसमें दिनमें ३ बार सल्लेखना-समाधिमरण ७५३ कमसे-कम दो-दो घड़ी
५।२४८ श्रेणीचारण-चारणऋद्धिका एक । पर्यन्त सामायिक करना
सामानिक-देवोंका एक भेद जो
सामानिक-देवा भेद पड़ता है
कि इन्द्रके माता-पिता २०७३
आदिके तुल्य होता है
१०।१५९ श्रेणीव-श्रेणोके अनुसार बसे
समाहित-समाधिमरणसे युक्त । हुए विमान
सिद्-अष्ट कर्मसे रहित त्रिलोक
पुरुष . १०११८७
के अग्र भागपर निवास . १०।११८
करनेवाले जीव पदव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, सम्यकचारित्र-मोक्षाभिलाषी एवं
२४.१३० अधर्म, आकाश और काल
संसारसे निःस्पृह मुनिकी | सिद्धके पाठ गुण-१ सम्यक्त्व ये छह द्रव्य हैं
माध्यस्थ वृत्तिको सम्यक्- २ दर्शन ३शान ४वीर्य २११८ चारित्र कहते हैं .
५ सोक्षम्य ६ अवगाहन ७ २४।११९
अव्यावाघ ८ बगुरुलघुता सचित्तसेवाविरति-सचित्त त्याग - सम्यक्स्वभावना-संवेग, प्रथम,
२०१२२३-२२४ नामक पांचवों प्रतिमा। स्थैर्य, असंमूढता, अस्मय- सुदर्शन-एक तप इसमें सचित्त वनस्पति तथा गर्व नहीं करना, बास्तिक्य
ভাও कच्चे पानीका त्याग और अनुकम्पा ये सम्यक्त्व सुषमा- अवपिणीका दूसरा होता है
भावनाएं है १०१५९ . २११९७
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