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आदिपुराणम्
चोपचुम्धुत्व-प्रश्न करनेकी | तरलप्रबन्ध-यष्टि नामक हारका | दम्यक-बछड़ा १८५० निपुणता ७६७
एक भेद १६।४७
दर-कुछ १२।१२३ तस्प-शय्या ९।२४
दवथु-सन्ताप ९।१६० छन्दोविचिति-छन्दोंका समूह तानव-कृशता १२।१३५ दवोयसी-अत्यन्त दूर रहनेवाला १६।११३
तान्त्र-तन्त्रीसम्बन्धी, तन्त्र्या अयं १०1८८ छाया-कान्ति ९।२९
तान्त्रः १२।२०२
- दशप्राण-काव्यके दस गुण १ तामित्रपक्ष-कृष्णपक्ष २०१२६८ श्लेष २ प्रसाद ३ समता
तामिटेतरपक्ष-कृष्ण और शुक्ल ४ माधुर्य ५ सुकुमारता जगत्त्रय-ऊर्वलोक, मध्यलोक,
पक्ष ३१२१
६ अर्थव्यक्ति ७ उदारता अधोलोक २१११९ तायिन्-रक्षक २०१९७
८ ओज ९ कान्ति और जनुष्यन्ध-जन्मान्ध ५।२१८ तारवी-तरु-वृक्षसम्बन्धी
१० समाधि जन्य-पुत्र १२७
१४।१५०
दशा - बत्ती, पक्षे अवस्था जलवाहिन्-मेघ ३१७४
तारा-आँखकी पुतली ११११८ ।। १५।११५ । जलाशया-जड़ अभिप्रायवाले, पक्ष
तिरस्करिणी-परदा १९।११८ दशावतार - भगवान् ऋषभ में जलसे युक्त ४.७२
तिरीट-(किरीट)-मुकुट ११११३३ देवके महाबल आदि १० जल्पाक-वाचाल, बहुत बोलनेतरिका-बाण ९९
पूर्व भव २५।२२३ वाला १७।१४७
तुणव-वाद्यविशेष २३।६२ दात्यूह-कृष्णवर्णका एक पक्षी ५।६ जागल-जलकी दुर्लभतासे युक्त
तुष्टूषु-स्तुति करनेका इच्छुक द्वादशगण-समवसरणमें भगवानके देश १६।१५९ २५॥१२
चारों ओर १२ सभाजातुषी-लाखको बनी हुई ११६९
तृण्या-तृणोंका समूह ८1५३ जानभूमि-देश ६२६
मण्डप होते हैं जिनमें क्रमसेतोक-पुत्र ३।१३२ .
१ गणधरादि मुनिजन २कल्प' जामी-बहन १५७० तौयान्तिको-आकण्ठ जलपूर्ण
वासिनी. देवियाँ ३ आयिजाल्म-नीच २२१८९
१९५६
काएं और मनुष्योंकी स्त्रियां जिघृक्षु-ग्रहण करनेके इच्छुक
त्रिकूट-लंकाका आधारभूत-पर्वत ४ भवनवासिनी देवियों ५ २।८७
४१२७ जिनजननसपर्या-जिनेन्द्रदेवकी
व्यन्तरिणी देवियां ६ त्रिदोष-वात, पित्त, कफ
ज्योतिष्क देवियाँ ७ भवन. जन्मकालीन पूजा १३१२१२ १५।३०
वासी देव ८ व्यन्तरदेव जीमूत-मेघ ४७९
त्रिरूपमुक्त्या -१ सम्यग्दर्शन ९ ज्यौतिष्कदेव १० कल्पजीवकं २ भेद-१ मुक्त २ संसारी
२ सम्यग्ज्ञान ३ सम्यक्२४८८
वासी ११ मनुष्य और
चारित्र २५।२२१ जीवक अधिगमके उपाय-सत्,
१२ पशु बैंठते हैं। यही त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम १९९९ द्वादशगण कहलाते हैं संख्या आदि अनुयोग, प्रमाण,
त्रिसाक्षिकम् -आत्मा, देव और २३॥१९३-१९४ नय और निक्षेप २४।९७-९८
सिद्धपरमेष्ठीको साक्षीपर्वक दाम-करधनी १४।१३ १७.१९९
दिध्यासु-ध्यान करनेके इच्छुक तनूनपाद्-अग्नि ५।२४२
२१॥६९ तरलप्रतिबन्धष्टि-जिसमें सब
दम-इन्द्रियोंका वश करना दिग्य-स्वर्गसम्बन्धी १०११७३ जगह एक समान मोती लगे
५।२२
दिग्यचक्षुः-अवधिज्ञानरूपी नेत्रहों ऐसी एक लड़वाली दम्य-बछड़ा ११२७
को धारण करनेवाले माला १६५४ दम्य-बछड़ा ८२९६
१५।१२२