Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 778
________________ ૬૮૦૮ आदिपुराणम् चोपचुम्धुत्व-प्रश्न करनेकी | तरलप्रबन्ध-यष्टि नामक हारका | दम्यक-बछड़ा १८५० निपुणता ७६७ एक भेद १६।४७ दर-कुछ १२।१२३ तस्प-शय्या ९।२४ दवथु-सन्ताप ९।१६० छन्दोविचिति-छन्दोंका समूह तानव-कृशता १२।१३५ दवोयसी-अत्यन्त दूर रहनेवाला १६।११३ तान्त्र-तन्त्रीसम्बन्धी, तन्त्र्या अयं १०1८८ छाया-कान्ति ९।२९ तान्त्रः १२।२०२ - दशप्राण-काव्यके दस गुण १ तामित्रपक्ष-कृष्णपक्ष २०१२६८ श्लेष २ प्रसाद ३ समता तामिटेतरपक्ष-कृष्ण और शुक्ल ४ माधुर्य ५ सुकुमारता जगत्त्रय-ऊर्वलोक, मध्यलोक, पक्ष ३१२१ ६ अर्थव्यक्ति ७ उदारता अधोलोक २१११९ तायिन्-रक्षक २०१९७ ८ ओज ९ कान्ति और जनुष्यन्ध-जन्मान्ध ५।२१८ तारवी-तरु-वृक्षसम्बन्धी १० समाधि जन्य-पुत्र १२७ १४।१५० दशा - बत्ती, पक्षे अवस्था जलवाहिन्-मेघ ३१७४ तारा-आँखकी पुतली ११११८ ।। १५।११५ । जलाशया-जड़ अभिप्रायवाले, पक्ष तिरस्करिणी-परदा १९।११८ दशावतार - भगवान् ऋषभ में जलसे युक्त ४.७२ तिरीट-(किरीट)-मुकुट ११११३३ देवके महाबल आदि १० जल्पाक-वाचाल, बहुत बोलनेतरिका-बाण ९९ पूर्व भव २५।२२३ वाला १७।१४७ तुणव-वाद्यविशेष २३।६२ दात्यूह-कृष्णवर्णका एक पक्षी ५।६ जागल-जलकी दुर्लभतासे युक्त तुष्टूषु-स्तुति करनेका इच्छुक द्वादशगण-समवसरणमें भगवानके देश १६।१५९ २५॥१२ चारों ओर १२ सभाजातुषी-लाखको बनी हुई ११६९ तृण्या-तृणोंका समूह ८1५३ जानभूमि-देश ६२६ मण्डप होते हैं जिनमें क्रमसेतोक-पुत्र ३।१३२ . १ गणधरादि मुनिजन २कल्प' जामी-बहन १५७० तौयान्तिको-आकण्ठ जलपूर्ण वासिनी. देवियाँ ३ आयिजाल्म-नीच २२१८९ १९५६ काएं और मनुष्योंकी स्त्रियां जिघृक्षु-ग्रहण करनेके इच्छुक त्रिकूट-लंकाका आधारभूत-पर्वत ४ भवनवासिनी देवियों ५ २।८७ ४१२७ जिनजननसपर्या-जिनेन्द्रदेवकी व्यन्तरिणी देवियां ६ त्रिदोष-वात, पित्त, कफ ज्योतिष्क देवियाँ ७ भवन. जन्मकालीन पूजा १३१२१२ १५।३० वासी देव ८ व्यन्तरदेव जीमूत-मेघ ४७९ त्रिरूपमुक्त्या -१ सम्यग्दर्शन ९ ज्यौतिष्कदेव १० कल्पजीवकं २ भेद-१ मुक्त २ संसारी २ सम्यग्ज्ञान ३ सम्यक्२४८८ वासी ११ मनुष्य और चारित्र २५।२२१ जीवक अधिगमके उपाय-सत्, १२ पशु बैंठते हैं। यही त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम १९९९ द्वादशगण कहलाते हैं संख्या आदि अनुयोग, प्रमाण, त्रिसाक्षिकम् -आत्मा, देव और २३॥१९३-१९४ नय और निक्षेप २४।९७-९८ सिद्धपरमेष्ठीको साक्षीपर्वक दाम-करधनी १४।१३ १७.१९९ दिध्यासु-ध्यान करनेके इच्छुक तनूनपाद्-अग्नि ५।२४२ २१॥६९ तरलप्रतिबन्धष्टि-जिसमें सब दम-इन्द्रियोंका वश करना दिग्य-स्वर्गसम्बन्धी १०११७३ जगह एक समान मोती लगे ५।२२ दिग्यचक्षुः-अवधिज्ञानरूपी नेत्रहों ऐसी एक लड़वाली दम्य-बछड़ा ११२७ को धारण करनेवाले माला १६५४ दम्य-बछड़ा ८२९६ १५।१२२

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