________________
पारिभाषिक शब्दसूची
६४५
मात्राटक-ईर्या, भाषा, एषणा ।
आदान निक्षेपण और प्रति. ष्ठापन ये पांच समितियां तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ये ३ गुप्तियाँ
१०६५ १४ मार्गणाएँ-१ गति २ इन्द्रि
य ३ काम ४ योग ५ वेद ...६ कषाय ७ ज्ञान ८ संयम
९ दर्शन १० लेश्या ११ भव्यत्व १२ सम्यक्त्व १३ संज्ञित्व और १४ आहारक
२४।९४-९६ मुक्तावली-एक तपका नाम
७।३० मोक्ष-आत्माका कर्मोंसे सर्वथा सम्बन्ध छूट जाना
२।११८
१४ राजु ऊँचे और ३४३ । विमंग-मिथ्या अवधिज्ञान राजु घनफलवाले आकाश
५।१०५ को लोक कहते हैं
विभूषणांग-आभूषण देनेवाला १११२
कल्पवृक्ष लोकपाल-देवोंका एक प्रकार, ये
३।३९ देव कोतवालके समान नगर
वैराग्यस्थैर्यभावना-विषयोंमें के रक्षक होते हैं
अनासक्ति, कायके स्वरूपका -- १०॥१९२
बार-बार चिन्तन करना और
जगत्के स्वभावका विचार वचोबलिन्-वचनबल ऋद्धिके
करना। ये वैराग्यस्थैर्य धारक
भावनाएं हैं २०७२
२१४९९ वन (चतुर्विध)-१ भद्रशालवन २ नन्दनवन ३ सौमनसवन
व्रतोंकी . उत्तर भावना--१
धुतिमत्ता-धैर्य धारण करना ४ पाण्डुकक्न २५।६
२ क्षमावत्ता-क्षमा धारण वन्य-व्यन्तर देव, इनके किन्नर,
करना ३ ध्यानकतानताकिंपुरुष, महोरग, गन्धर्व,
ध्यानमें लीन रहना ४ परी
षहोंके आनेपर कार्यसे यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ भेद होते हैं
च्युत नहीं होना
२०११६६ १३।१३ वाग्गुप्ति-वचनको वशमें करना व्रतोद्योत--दूसरी व्रत प्रतिमा २।७७
जिसमें ५ अणुव्रत ३ गुणवागविग्रुट्-एक ऋदि २१७१
व्रत और ४ शिक्षाव्रत ये विकृष्टप्राम-जिसमें सौ घर हों
१२ व्रत धारण करने ऐसा ग्राम । इसको सीमा १कोशकी होती है
१०।१५९
पड़ते हैं
रज्जु--असंख्यात योजनको एक रज्जू-राजु होती है
१०।१८५ रखत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र
१४ रखावली--एक तप
७.४४ रुचि-सम्यग्दर्शनका पर्यायान्तर ।
९।१२३ रौद्रध्यान-ध्यानका एक भेव।
इसके चार भेद हैं-१हिंसानन्द २ मषानन्द ३ स्तेयानन्द ४ विषयसंरक्षणानन्द
३११४२-५४
विक्रियादि- एक ऋदिविशेष
इसके आठ भेद है-अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व
२०७१ विक्षेपिणी-परमतका निराकरण
करनेवाली कथा . १११३५ विपुलमति-विपुलमतिमनःपर्ययज्ञान ऋद्धिके धारक
२०६८
शिक्षाव्रत--जिनसे मुनिव्रत धारण
करनेको शिक्षा मिले। ये चार हैं-सामायिक,प्रोषधोपवास,अतिथिसंविभाग और संन्यास-सल्लेखना । कोई. कोई आचार्य सल्लेखनाका पृथक् निरूपण कर उसके स्थानपर अतिथिसंविभाग व्रत अथवा वयावृत्यका वर्णन करते हैं १०।१६६
कोक-जहांतक जीव, पुद्गल, धर्म,
अधर्म, आकाश और काल ये छहो द्रव्य पाये जाते हैं उस ।